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उपन्यास >> अंधकार

अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

: 9 :

 

ड्रायंग रूम में तारकेश्वरो जो रात सूरदास के सामने उसके कमला से विवाह को स्वीकार कर चुकी थी अब अपने निर्णय पर पुनरावलोकन कर रही थी। वह अपने मन में उठ रहे तूफान को साथ बैठे अभ्यागतों से छुपाने के लिये इधर-उधर की बातें करने लगी। सेठ कौड़ियामल्ल भी जानता था कि सूरदास की मां और धनवती लड़की को देखते ही गम्भीर हो गयी हैं। वह समझ रहा था कि लड़की की रूप-राशि उनको पसन्द नहीं आयी। इस पर भी वह कमला के रूप को उसके पिता की सम्पत्ति के प्रकाश में इतना अप्रिय नहीं मानता था कि वह इस प्रकार अस्वीकार कर दी जाये। अत: वह मी गम्भीर हो तारकेश्वरी की व्यर्थ की बातें सुन रहा था।

तारकेश्वरी ने बात पूछ ली बदायूं में राम मन्दिर की। उसने पूछा, "कितना बड़ा हाल बनाया है उसमें?''

उत्तर सेठजी ने दिया। उसने बताया, "चालीस फुट चौड़ा और साठ फुट लम्बा है। साथ ही बाजुओं में भी स्थान है। सब मिलमिला कर उसमें भूमि पर दो सहस्त्र श्रोतागणों के बैठने का स्थान है।"

"कितने लोग नित्य अथवा पर्वो पर वहां एकत्रित होते हैं?"

''नित्य तो हाल में पचास-साठ से अधिक व्यक्ति नहीं आते। हां, पूर्णिमा, अमावस्य को उपस्थिति चार-पांच सौ तक चली जाती है। परन्तु जब राम वहां था तो हज़ार दो हज़ार एकत्रित हो जाते थे।

राम के लिये तो हम खुले मैदान में शामियाना लगवाते थे। इस हाल का उद्घाटन राम के चले आने के उपरान्त हुआ है।"

''आप इन कंट्रोल के दिनों में तीन सौ के लगभग के क्षेत्र में अन्न कहां से लाते हैं?"

''हमारे अपने खेत हैं। उनमें हम मक्का, गेहूं और साग-भाजी उपजाते हैं और डिप्टी कमिश्नर की विशेष अनुमति से उन खेतों की उपज पर ही यह भण्डारा चलता है।"

इस समय प्रियवदता कमरे में आ गयी। उसने आते ही कहा, "बूआ! मैं तुमसे पृथक् में एक बात बताना चाहती हूं।"

''अभी अथवा पीछे?''

''अभी, तुरन्त'!"

दोनों उठकर ड्रायंग रूम के बाहर बगल के एक कमरे में चली गयी। उनके चले जाने पर कमला ने पिता से कहा, "पिताजी! यह ठीक ही हुआ है कि रामजी मिल गये हैं, परन्तु विवाह नहीं होगा।" 

"परन्तु रात तुम्हारे आने से पहले राम की मां का टेलीफ़ोन आया था। उसने कहा था कि राम समझता है कि विवाह बम्बई में ही हो जाये और पीछे ही वह कुछ दिन के लिये बदायूं जायेगा।"  "कहां होगा? पिता जी, परन्तु मैं इस लड़की को ईर्ष्या की आग से जल रही देख रही हूं।"

सेठ जी ने मुस्कराते हुए कहा, "जल रही है तो स्वयं ही भस्ह हो जाएगी। तुम चिन्ता किसलिये कर रही हो?"

''मुझे चिन्ता नहीं। मैं तो विवाह की आशा और अभिलाषा दोनों का ही त्याग कर चुकी हूं। मैं समझती हूँ कि इनके यहाँ अल्पाहार तक ठहरना भी उपयुक्त नही होगा। हमारे यहां अधिक देर तक रहने से इनका अनिष्ट ही होगा।"

''अब आकर अकारण भाग जाना अशिष्टता हो जायेगा।''

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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