उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
: 2 :
तारकेश्वरी देवी काठियावाड़ गुजरात के एक नगर अहमदाबाद की रहने वाली थी। उसका विवाह बड़ौदा के राक धनी कारखानेदार से हो गया, परंतु विवाह के कुछ मास उपरांत उसके पति का देहांत हो गया। इससे वह पति का घर छोड़ पिता के घर में आ गयी। उसे विधवा हुए पांच वर्ष हो चुके थे जब वह गर्भवती हो गयी।
पिता को बहुत चिंता लगी। उसने उसके बढ़ रहे पेट को देख पूछ लिया, "तारा। यह क्या है?''
तारकेश्वरी की मां नहीं थी और पिता के धर का प्रबंध तारा ही कर रही थी। उसके दो भाई और भावजे भी थीं, परन्तु वे सब अहमदाबाद से बाहर रहते थे, एक सूरत में और दूसरा बड़ौदा में। अत: तारकेश्वरी की समस्या पिता को ही पहले पता चली। इस समय गर्भ तीन मास का था।
पिता से पूछे जाने की वह प्रतीक्षा में थी और पूछे जाने पर क्या कहना है, यह वह विचार कर चुकी थी। उसने कह दिया, "पिताजी! मैं गर्भवती हूं।"
"यह तो मैं भी देख रहा हूं, परंतु यह किसका है?"
"जिसका है वह भाग गया है और लापता हौ गया हूँ।"
''तो इसको भी लापता कर देती। इसे किसलिये रख छोड़ा है?''
"देखूंगी कि कैसा है? यदि सुंदर, मेधावी हुआ तो इसे अपने लिये रख छोडूंगी।"
"इससे तो बहुत बदनामी होगी।"
"परंतु पिताजी! यदि यह मेरे जैसा ही सुंदर और बुद्धिशील निकला, तो बदनामी के भय से उसकी हत्या कर देना भारी पाप हो जायेगा। न केवल अपनी हानि करूंगी, वरंच अपने परिवार और देश की भी हानि होगी। यह तो घोर पाप होगा।"
"परंतु जब तक वह पंद्रह वर्ष का नहीं हो जाता, यह पता कैसे चलेगा कि यह मेधावी है या नहीं और तब तक कहां रखोगी इसे? कहीं अपने पिता के समान लंठ, गंवार हुआ तो उस समय उसकी हत्या कर सकना सम्भव नहीं होगी?'
''नहीं। तब हत्या नहीं करूंगी, परंतु गंदी नाली में पलने वाले कीड़े-मकौड़ों की भांति उसे भी किसी नाली में विचरने दूंगी।"
पिताजी को समझ आया कि लडकी बदनामी के लिये डरती नहीं, परंतु वह अपनी तथा परिवार की बदनामी सहन नहीं कर सकता था। अत: वह स्वय ही इसका पार पाने की योजना बनाने लगा। एक दिन वह तारकेश्वरी को लेकर हरिद्वार जा पहुंचा और गंगा घाट पर मिल गया धनवती का घरवाला विष्णुदत्त। तारकेश्वरी के पिता ने देखा कि अति निर्धन अवस्था में पैबंद लगे, परंतु धुले वस्त्र पहने एक व्यक्ति घाट पर पूर्वाभिमुख बैठा स्तोत्र पढ़ रहा है। सूरत, शक्ल से वह भला प्राणी प्रतीत हुआ। जब वह पूजा से अवकाश पा चुका तो तारकेश्वरी के पिता ने पूछ लिया, "क्या नाम है आपका?''
"किसलिये पूछ रहे हैं?"
''आपकी ईश्वर के प्रति भावना देखकर।"
"उससे नाम का सम्बंध नहीं है।"
तारकेश्वरी के पिता को समझ आया कि व्यक्ति बुद्धिशील है। इस पर उसने आगे पूछ लिया, "विवाह हो चुका है क्या?''
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :