लोगों की राय

उपन्यास >> अंधकार

अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

: 8 :

 

प्रकाशचन्द्र मुरादाबाद अपने मित्र कृष्ण कुमार से मिलने गया और चौथे दिन लौट आया। भागीरथ अभी नहीं आया था। उसके विषय में कोई पत्र आदि भी नहीं आया था। इस कारण कौड़ियामल्ल काम-धन्धे पर कमला को लगाने पर गम्भीरतापूर्वक विचार करने लगा था। जब प्रकाशचन्द्र अपनी मोटर से उतर हवेली में प्रविष्ट हुआ तो नौकर-चाकर उसको देख अपने-अपने स्थान पर सावधान हो गये थे। और क्रुक-झुक कर नमस्कार करने लगे थे।

कौड़ियामल्ल भी मोटर का हार्न सुन कार्यालय से बाहर निकल आया।

"सुनाओ प्रकाश! मिल आये हो क़ष्ण से?" उसने पूछा।

"हां, पिताजी! एक और शुभ समाचार है कि मुझे टिकट मिल चुका है। केवल घोषणा नहीं हुई।"

''तब तो ठीक है। परन्तु........।" सेठजी ने बात करते करते रुक कर कहा, "अच्छा भीतर हो आओ। फिर तुमसे बात करूँगा।"

सेठजी का अभिप्राय था कि प्रकाश अपनी मां तथा पत्नी से मिल आये, परन्तु प्रकाश भीतर जाने के स्थान सूरदास के कमरे में चला गया। सूरदास आचार्य सोमदेव से शास्त्र पढ़ रहा था।

जब प्रकाशचन्द्र कमरे में गया तो आचार्यजी बता रहे थे, "बुद्धि की निर्मलता से संसार के तथा अध्यात्म जगत् के रहस्यों का पता चलता है। योगाभ्यास से दोनों प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं और योग की अन्तिम सीढ़ी में बुद्धि की एकाग्रता प्राप्त होती है...।''

इस समय प्रकाशचन्द्र ने कमरे में प्रवेश किया। आचार्यजी को मौन होते देख सूरदास ने आंखें खोली और विस्मय में आचार्यजी की ओर देखने लगा। आचार्यजी ने कह दिया, "बाबू प्रकाशचन्द्र आये है।'' प्रकाशचन्द्र ने पूछ लिया, "राम! कैसे हो?"

''बहुत मज़े में हूं।"

''कथा-कीर्तन की क्या अवस्था है?"

''आज सायंकाल स्वयं देखना। मैं तो वक्तव्य देता हूँ और देख नहीं सकता कि कितने सुनते हैं और कितने प्रसन्न होते हैं। इस पर भी कुछ ऐसा अनुभव होता है कि श्रोतागणों की संख्या बढ़ रही है।''

"ठीक है।"

"भैया! मैं कृछ विशेष बात नहीं करता। इसमें मुझे कष्ट भी नहीं होता। मैं तो राम नाम की महिमा ही गाता हूँ और लोग उसके राजनीतिक अर्थ लगाने लगते हें।''

"परन्तु राम नाम के राजनीतिक अर्थ तो हैं ही। महात्मा गाँधी राम-राम कहते हुए स्वर्ग को चले गये और हमारे लिये स्वराज्य प्राप्त कर गये। अच्छा राम! तनिक मां के चरण स्पर्श कर आऊं।" इतना कह प्रकाशचन्द्र वहां से चला आया।

उसके चले जाने के उपरान्त आचार्यजी ने कहा, "राम भैया! यह जनता से भारी छलना खेलेगा''

"क्या छलना खेलेगा?''

''यह भी गांधीजी की भान्ति राम के मिथ्या अर्थ लगायेगा।"

सूरदास ने कहा, "आचार्यजी!

एक राम अवघेस कुमार।। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा।
नारि बिरह दुसु लहेउ अपारा। भयउ रोषु रन रावनु मारा।।
प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai