उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
|
0 5 पाठक हैं |
गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
कमला के इस कहने पर कौड़ियामल्ल विचार करने लगा कि उसने क्या सुझाव दिया था। पिछले दिन की बात वह सर्वथा विस्मरण कर चुका था। पिताजी को विचार करते हुए गम्भीर देख प्रकाश ने बात स्मरण करा दी। उसने कहा, "कमला की अध्यापिका ने कहा था कि कमला को कारोबार में सम्मिलित कर लेना चाहिए।"
"मुझे इसके कर सकने पर सन्देह है।''
''भागीरथजी से भी अधिक?" कमला का प्रश्न था।
''उसके विषय में मैं कुछ नहीं जानता। मेरा अनुमान है कि वह मेरे धन का उत्तराधिकारी बनने के लिए तुमसे विवाह तो स्वीकार कर लेगा, परन्तु वह व्यापार में रुचि न रखने से काम नहीं करेगा। "पर मैं तो काम में रुचि लूँगी।"
''पर वह एम0 ए0 पास है और तुम क्या पढ़ी हो?"
चन्द्रावती ने हंसी उड़ाने के लिए कह दिया, "यह मेरी अलमारी से चुराकर प्रेम सागर पढ़ी है।''
''नहीं मां! मैं एक बात और भी पढ़ी हूं।"
''क्या?"
''रामचरित्र मानस। उसमें लिखा है-
जो समिरत सिधि होइ गननायक करिवर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ युद्धि रासि सुभ गुन सदन।।
मूक होई बाचाल पंगु चढुइ गिरिबर गहन।
जासु कृपा सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन।
''मां। उन विनायकजी की कृपा से मैं कठिन से कठिन काम भी कर लूंगी।
प्रकाशचन्द्र हंस पड़ा और बोला, "कमला। तुम्हें उस हाथी के सिर वाले पर अपनी योग्यता से भी अधिक विश्वास है?''
''भैया! यह योग्यता भी तो उसी की दी हुई है। यह उसकी
कृपा से ही फलेगी।"
''मुझे सन्देह है।"
परन्तु सेठजी के मन में भगवान् की कृपा पर अधिक श्रद्धा थी और उसको भागीरथ से अधिक अपनी अल्पवयस्क लड़की पर विश्वास होने लगा था; इस पर भी उसने कह दिया, "कमला के कहने में तत्व तो है, परन्तु भागीरथ से बात करने के उपरल्त ही मैं कमला की अध्यापिका के सुझाव पर विचार कर सकता हूँ। भागीरथ को देखे पाँच वर्ष से अधिक हो चुके हैं और इन पाँच वर्षों में वह कुछ बदल भी सकता है।''
|
- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :