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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

: 3 :

 

सायंकाल प्रकाश चाय पीने आया तो वह श्रीमती को विमला के साथ वहां बैठा देख हंस पड़ा। विश्वम्भर भी विमला और श्रीमती के बीच बैठा था। इस समय शीलवती भी वहां उपस्थित थी। जब प्रकाशचंद्र बैठ गया तो मां ने पूछ लिया, "तो तुम बरेली नहीं गये न?"

''नहीं।"

''अब लड़ाई का विचार बदल दिया है न?"

''हां मां! श्रीमती ने कहा है कि वैश्य के बेटे को अपने परिवार से लड़ना नहीं चाहिये।''

''तो पति-पत्नी दोनों सम्मति कर आज चाय पीने आये हो?"

"सम्मति करके तो नहीं आये। वह अपनी इच्छा से आयी है और मैं अपनी इच्छा से। इस पर भी प्रेरणा श्रीमती ने ही दी है।''

''तब तो श्रीमती का धन्यवाद करना चाहिये।'' चन्द्रावती ने मुस्कराते हुए कहा।

इस पर शीलवती ने कह दिया, "मैं समझती हूं कि घर मैं इस नये बच्चे ने भाभी के रोग का निवारण कर इसे जीवन में रस लेने की प्रेरणा दी है।"

विमला इस सब वार्त्तालाप में निर्लेप बैठी थी। वह न तो हर्ष, न शोक प्रकट कर रही थी चन्द्रावती ने उसे भी अपने बच्चे के विषय में कुछ कहने के लिये पूछ लिया, "क्यों विमला! घर में यह परिवर्त्तन कैसा लग रहा है?"

''न अच्छा, न बुरा। मैं समझती हूं कि एक परती भूमि पर किसी ने अधिकार जमा वहां कुछ बो दिया है। उससे कुछ पैदा भी हुआ है, परन्तु वह पैदा हुआ कोई विष फल है अथवा अमृत फल अभी नहीं कहा जा सकता। इस पर भी भूमि इसमें क्या रुचि ले सकती है? फल बीज डालने वाले को मिल जायेगा अथवा जो उस फल का सेवन करेगा, वह इसका अनुभव करेगा।"

''पर भूमि तो विष-बीज के सीचे जाने से बच सकती थी।"

''मां जी! वह बेचारी निर्जीव सींचने का विरोध नही कर सकी।"

शीलवती ने विचार किया कि इस दुःखद घटना का वहां कथन और फिर तू-तू, मैं-मैं नहीं होनी चाहिए। अत: उसने कह दिया,

''विमला के व्यवहार पर अभी विचार नहीं हो सकता।"

''क्यों?" प्रकाशचन्द्र का प्रश्न था।

उत्तर शीलवती ने ही दिया। उसने कहा, "कारण यह है कि भूमि अभी परती पड़ी है और उस पर जुताई-बुआई नहीं ही रही। इस कारण कहा नहीं जा सकता कि भूमि पर बबूल और आक ही उत्पन्न हो सकता है अथवा आम तथा अंगूर भी। बीज को दोष तो तब दिया जा सकता है जब भूमि पर गुलाब और मोतिया उत्पन्न हो रहा हो।"

''ठीक है।'' प्रकाशचन्द्र ने कह दिया,"विमला को पुन: विवाह कर लेना चाहिये।''

"भूमि अपने अभिमानी देवता का आह्वान कर रही है। यदि वह मान गया तो वह अपने व्यवहार को स्वतन्त्रतापूर्वक चला सकेगी।" विमला ने भविष्य के विषय का संकेत कर दिया।

''और वह कौन है?" प्रकाशचन्द्र ने यह समझा कि वह कहीं अन्यत्र विवाह करने का विचार कर रही है। किसी ऐसे देवता से जो उसको प्रत्येक प्रकार की स्वतन्त्रता प्रदान कर सके।

शीलवती चाहती थी कि विमला इस वाद-विवाद में न पड़े। अत: उसने विमला के कुछ कहने से पहले ही कह दिया, "वह एक है, जो प्रत्येक जड़ पदार्थ के भीतर रहता है। सुषुप्ति अवस्था में भूमि में भी एक ऐसा देवता रहता है और जब वह जाग पड़ता है तो यदि कोई विष बीज वायु इत्यादि से भी उड़कर उसमें आ गिरे तो वह उसको भस्म कर देता है। किसी जीव का ऐसी भूमि पर आकर बिना उसकी स्वीकृति के अधिकार कर लेना तो उस देवता के कोप का भाजन बनना है। यह एक अति भयंकर बात हो जाती है।"

''ठीक है। विमला अपने देवता को शंख, घड़ियाल बजा कर जगा ले। तब उस देवता को प्रसन्न करने वाले भूमि पर पांव धर सकेंगे।'' प्रकाशचन्द्र को समझ आने लगा था कि वह अपने उपास्य देव की बात कर रही है।

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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