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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

''यह तो है ही। इसलिये कह रही थी कि विमला के कथन पर अभी विचार नहीं हो सकता। मेरा यही अभिप्राय है कि भमि के

अभिमानी देवता अभी सोये पड़े हैं।

''श्रीमती की भी यही बात थी। अब कुछ ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इसका अभिमानी देवता जाग रहा है और यह अब स्वेच्छापूर्वक कार्य करने लगी है।"

''पर शील बहन! उस देवता को कैसे जगाया जा सकता है? मुझे भी बता दो, जिससे में भी अपने विरोधियों को भस्म कर सकूँ।"

शीलवती हंसी तो चन्द्रावती और श्रीमती विस्मय में प्रकाश का मुख देखने लगीं। वे जानना चाहती थीं कि उसके कौन-कौन शत्रु है, जिनको वह भस्म करना चाहता है?

शीलवती ने हंस कर उत्तर दिया, "पर भैया! क्या तुम कोई जड़ पदार्थ हो? अभिमानी देवता होते तो सबमें हैं, परन्तु सजीव पदार्थ में तो एक अन्य देवता भी विराजमान होता है और यदि उनमें का अभिमानी देवता बिना दूसरे देवता को सुलाये जाग पड़े तो फिर दोनों में घोर संघर्ष भी चल सकता है। यह संघर्ष अति भयानक भी हो सकता है।''

''क्या पहेलियां डाल रही हो शील बहन? मुझ जैसे मूढ़ प्राणी को कुछ समझ नहीं आ रहा।"

"हां।" शील ने चाय के प्याले से एक सरुकी लगा अपने विचारों को सुव्यवस्थित कर कह दिया, "भैया। तुम पहले मूढ़ता को छोड़ने का विचार करो। तब तुम्हें अपने में कार्य कर रहे वर्तमान देवता का ज्ञान हो जायेगा। उसकी उपस्थिति में तुम किसी दूसरे देवता की आवश्यकता अनुभव करते हो अथवा नहीं? यह जानकर ही तुम अपने अभिमानी देवता का आह्वान कर सकते हो।"

''मैं अभी भी कुछ नहीं समझा।"

"तो समझ लो। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार ये दुष्ट देवता हैं जो मनुष्यों में प्राय: अपना स्थान बनाये रहते हैं। पुरुषों में इनका वास विशेष रूप में होता है।

''स्त्रियों में ये देवता प्राय: नहीं होते। इसमें कारण उनकी जडता ही है। कोई-कोई स्त्री सजीव हो उठती है तो ये देवता उनमें भी घुस आते हैं।

''इन पांच देवताओं की उपस्थिति में मनुष्य का अभिमानी देवता जाग सकता ही नहीं। अत: पहले इनको चित्त से निकालो तो पीछे दूसरे देवता की बात हो सकती हे।''

''पर मुझमें ये काम, क्रोध देखे हैं शील बहन ने? मुझे तो वे दिखायी नहीं देते।"

''भैया। ये देवता किसी दूसरे को दिखायी तब ही देते हैं जब कोई दूसरा इनके कोप का भाजन बने। मैंने तो, जहाँ तक मुझे स्मरण है, भैया में इन देवताओं को कुपित करने की धृष्टता नहीं की। इस कारण मुझे ये दिखायी दिये नहीं। मैंने तो पुरुषों की एक सामान्य बात कही है।

"इस पर भी यदि भैया इनके विषय में जानना चाहते हैं तोउन्हें अन्तर्ध्यान होकर चिन्तन करना पड़ेगा।

''इन देवताओं की उपस्थिति में अभिमानी देवता को बुलाना भयावह होगा।"

"मैं समझता हूं कि मुझमें ये दूषित देवता नहीं हैं। इसीलिये मैं उस अभिमानी देवता का आह्वान करना चाहता हूं और शील बहन से पूछ रहा हूं कि वह कहाँ है?"

चाय समाप्त हो चुकी थी और सब उठ खड़े हुए थे। जब श्रीमती और प्रकाश चले गये तो शीलवती ने सेठानीजी के साथ चलते हुए कहा,"पति-पत्नी किसी प्रकार का षड्यन्त्र कर रहे प्रतीत होते हैं।" 

"हो सकता है, परन्तु शील! राम के भक्तों को षड्यन्त्रों से भयभीत नहीं होना चाहिये।"

''परन्तु मांजी। राम सतर्क रहने से तो मना नहीं करते।''

"तो रहो। परन्तु शील, घर के पुरखा हैं सेठजी। तुम उनको ही यह बात बताना और फिर किससे और कहां सतर्क रहा जाये, यह मी समझा देना।" 

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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