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उपन्यास >> अंधकार

अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

: 9 :

 

शीलवती कमला को पढाने मध्याह्नोत्तर आया करती थी। जब कमला साढ़े चार बजे के लगभग वहाँ पहुंची तो शीलवती को अपनी प्रतीक्षा मे बैठे देख बोली, "बहनजी! अब पढ़ाई का समय बदलना होगा।"

"हां, माताजी ने मुझे बताया है कि तुम पिताजी के व्यवसाय में सहायक नियुक्त हो गयी हो। मैं तुमको इस नये जीवन में पदार्पण पर बधाई देती हूँ। मैं समझ रही हूं कि अब पढ़ाई में भी अन्तर आना चाहिए।" अभी तक तुम भाषा और शास्त्राध्ययन ही करती थीं। अब कुछ अर्थ शास्त्र भी पढ़ना होगा।"

''कुछ उसका ज्ञान भी है।"

''उतने से कौम नहीं चलेगा। मैं समझती हूं कि मास्टरजी से तुमको उच्च स्तर का अर्थशास्त्र का साहित्य मंगवा दूंगी।"

"आप कितना पढ़ा सकती है?"

"मैंने एम0 ए. संस्कृत में किया है। अर्थशास्त्र बी0 ए0 तक पड़ा है; इस कारण मास्टरजी से सहायता लेनी होगी।''

''बहनजी! अभी तो मैं आपसे ही पढ़ा करूंगी।"

अब कमला मध्याह्न के स्थान प्रातः-सायं पढ़ने लगी थी। परिणाम यह हुआ था कि वह अब सूरदास के बहुत कम दर्शन कर पाती थी।

प्रकाशचन्द्र को काँग्रेस का टिकट मिल गया और वह सूरदास को साथ लिए हुए अपने निर्वाचन क्षेत्र में घूमने लगा था। कभी-कभी ही सूरदास रात घर पर सोता था।

सेठजी स्वयं अब प्रकाश के स्थान पर बम्बई, कलकत्ता इत्यादि व्यवसाय के केन्द्रो पर जाने लगे थे। वह सप्ताह दो सप्ताह में एक-दो दिन घर आतेथे और प्राय: बाहर के केन्द्रों की देख-रेख के लिये जाना होता था। कमला अब बदायू में मुख्य कार्यालय में कार्य देखती थी। दिन भर में दस-बीस हस्ताक्षर करने होते थे और मैनेजर रामेश्वरदयाल समझाकर करा लेता था।

कमला को कार्यालय में जाते एक सप्ताह से कुछ ही ऊपर हुआ था कि चन्द्रावती की मौसी का पोता भागीरथलाल वहां आ पहुंचा। स्टेशन से तागे पर सामान सहित लदा हुआ वह हवेली के द्वार पर  उतरा। उस दिन सेठनी बम्बई गये हुए थे। प्रकाश सूरदास को अपने साथ लिए हुए कही दूर देहात में गया हुआ था।

भागीरथ ने हवेली के द्वार पर खड़े चौकीदार से पूछा, "सेठजी कार्यालय में हैं?"

''नहीं।" चौकीदार का उत्तर था, "वह तो बम्बई गये हैं।" 

"और सेठानीजी?

''वह भीतर हैं।"

"अच्छा। हमारा सामान यहां रखो और भीतर सूचना भेज दो।"

चौकीदार ने तांगे से बाबूसाहब का सामान उतारकर ड्योढ़ी में रख दिया और भीतर सूचना देने के लिये चला गया। भागीरथ ने उसे अपना 'विज़िटिंग कार्ड' दे दिया था।

चन्द्रावती को जब घर की सफाई करनेवाली नौकरानी ने कार्ड दिया तो वह मुख देखती रह गयी। कार्ड अग्रेज़ी में छपा था और चन्द्रावती अंग्रेज़ी का एक अक्षर नहीं जानती थी। उसने नौकरानी से पूछा, "यह क्या है।"

"कोई साहब आये हैं और उन्होंने अपना नाम इस पर छपवा रखा है।"

"ओह। अच्छा देखो, कार्यालय में चली जाओ और कमला से कहो कि इस आदमी का नाम हिन्दी में लिख दे, जिससे पता चले कि कौन आया है।"

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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