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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

''पर रामेश्वरदयाल जी! मैं उसकी रुचि को वर्जित नहीं कर रहा। यह उसकी मुझमें रुचि से बनी है और बनी रहेगी। मैं उसके अधिकार की बात कह रहा हूँ। एक राजनीतिक जीव को व्यापार नहीं करना चाहिए।''

रामेश्वरदयाल का विचार था कि सेठजी केवल बाहर दिखावा कर रहे हैं। इस कारण वह चुप कर रहा। वह अपने स्थान पर गया और खातों को 'ओंपरेट' करने के लिए बैंकों से फार्म मगवाने के लिए पत्र बैंकके मैनेजर को लिखने लगा।

मैनेजर को विदाकर सेठजी ने अपनी मेज के दराज़ का ताला खोला और कमला को अपनें निजी खाते की पासबुक तथा चैकबुक दिखा दी और कहा, "मैं दो सहस्त्र प्रति मास व्यापार से अपने हिसाब में डाल लेता हूँ और इतना ही प्रकाश को दे देता हूँ। आज तुम्हरे खर्च के लिए भी तुम्हारा वेतन नियत कर रहा हूं। अभी तुमको एक सहस्र रुपया मासिक मिला करेगा और विवाह के उपरान्त भी यदि तुम इस व्यवसाय में काम करती रहीं तो दो सहस्र प्रति मास पाती रहोगी।

''तुमने इसके अतिरिक्त अपने लिए व्यापार में से कुछ नहीं निकालना।''

कमला ने बैंक की पासबुक मेँ से देखा कि पिताजी के निजी खाते में दौ सौ रुपये के लगभग ही हैं। यह महीने के अन्तिम दिन थे। तब अतूक्बर की अठाईस तारीख थी।

सेठजी ने अब कमला को अपनी पांकेटबुक निकाल कर दिखायी। उसमें वह अपने निजी खर्चे लिखा करते थे। सेठजी ने अक्तूबर मास का खर्चा निकलकर दिखा दिया। महीने के आरम्भ में जब दो सहस्त्र रुपया खाते में जमा कराया था तो कुछ रकम हो गयी थी दो सहस्त्र सात सौ नब्बे रुपये। उस महीने के खर्चे भीलिखे थे। घर के नौकरों के वेतन लिखे थे। इसमें कमला की अध्यापिका का वेतन भी लिखा था, चौकीदार था, झाड़ने-फूँकने वाला नौकर था, भंगी और चौका-बासन करने वाली नौकरानी थी, रसोइया था, सुन्दरदास का वेतन था। घर की रसद-पानी के लिए सात सौ रुपया सेठानीजी को दिया

गया लिखा था। इसके अतिरिक्त कमला और कमला की माँ के लिए एक-एक सौ रुपया जेब खर्च लिखा था। कुछ अन्य छोटे-छोटे खर्च दान, चन्दा इत्यादि लिखे थे। नित्यप्रति दस-बीम रुपये दान में फुटकर खर्च होते थे और अब केवल दौ सौ रुपये के लगभग शेष थे।

सेठजी ने कह दिया, "तीन दिन में अगले मास की पहली तारीख होगी और मैं इस खाते में अपने दो सहस्त्र डाल दूँगा। अब तुम स्वयं वेतन पाने लगी हो; इस कारण तुमको एक सौ मुझसे नहीं मिला करेगा, प्रत्युत अपने खाने...पीने का खर्चा तुम अपने पास से मां को दिया करोगी।''

''कितना देना होगा?"

''यह तुम अपनी माँ से निश्चय कर लेना। उसी से पता कर लेना कि प्रकाश कितना देता है?''

"और यहू देखो।" सेठजी ने एक अन्य रजिस्टर निकालकर दिखाते हुए कहा, "इसमें मेरी सम्पत्ति का वृत्तान्त है। इसमें दो प्रकार की इमारते हैं। एक वे जो मेरे निजी प्रयोग में आती हैं। दूसरी वे जो व्यवसाय सम्बन्धी हैं। अपने निजी प्रयोग की इमारतों में मैंने एक नया मकान बनवाना आरम्भकर दिया है। सुन्दरदास का मकान खाली करवा लिया है। वह गिराया जा रहा है। वहाँ एक मकान बनवाने का विचार है। वह सूरदास के लिये होगा। उसका नक्शा बनाने के लिए आर्कीटैक्ट को कह दिया है। वह दो-तीन दिन में 'प्लैन' बनाकर लायेगा। जब दें स्वीकार कर लूंगा तब वह नगरपालिका में स्वीकार करवाना होगा।'' 

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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