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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

चतुर्थ परिच्छेद

: 1 :

 

प्रकाशचन्द्र पहले ही दिन कार्यालय में गया तो उसे पता चल गया कि उसकी प्रतिष्ठा कम हो गयी है। उसने कमला से पहले पहुँच डाक खोल पढ़ ली और उस पर पत्रों के उत्तर में आज्ञायें लिख दीं पत्र रामेश्वरप्रसाद को दे दिए। वह प्रकाश बाबू की सब बात सुन कमला की मेज के सामरों जा बैठा और पुन: उसे एक-एक पत्र दिखाकर आज्ञायें लेने लगा।

प्रकाश यह देख रहा था और इससे सटपटा रहा था, परन्तु मन की मन में ही रखकर। जब कमला राम मन्दिर में अन्न क्षेत्र का प्रबन्ध देखने गयी थी तो वह मैनेजर से पूछने लगा, "कमला ने कुछ भिन्न सम्मति दी हैं?''

"जी! एक दो विषयों पर तो उन्होंने आपके निर्देश के सर्वथा विपरीत मत दिया है, परन्तु उन्होंने कहा है कि तुरन्त बम्बई पिताजी को उसकी और आप दोनों की सम्मति बता दी जाये और तब तक मामले को रोक रखा जाये, जब तक पिताजी की आज्ञा नहीं आती।"

''तो आपने पिताजी को लिख दिया है?''

"जी हां! वह पत्र डाक में चला गया है।"

"मुझसे पूछना तो था।"

''बाबू साहब! मेरे लिए अब कमलाजी अन्तिम अधिकारी हैं; परन्तु यह तो उनकी विनम्रता है कि उन्होंने आपकी बात रह न कर पिताजी से सम्मति मांग ली है।"

"ठीक है। मैं इसके विपरीत कुछ नहीं कर रहा। मैं यह देखना चाहता था कि कमलाजी ने क्या आज्ञा दी है। जो मेरी आज्ञा के विपरीत है?"

"अब तो पत्र चले गये हैं। यहां बारह बजे डाक खुल जाती है। इस कारण यह आज्ञा है कि प्रात: की डाक जाने से पूर्व यहाँ के पत्र डाकघर मैं पहुँच जाने चाहिएं।"

प्रकाश अपने मन का असन्तोष मैनेजर के सामने प्रकट होने नहीं देना चाहता था। अत: वह चुप रहा। बारह बजे सिन्हा दिल्ली से आ गया और उनको बदायूँ में एक मकान में टिकाने का विचार किया गया। प्रकाश बाबू का विचार था कि सिन्हा को राम र्मान्एदर के ऊपर के कमरों में स्थान मिल जाये, जिससे वह अपने परिवार को बुलाकर उसमे सुखपूर्वक रह सके। परन्तु यह बात चन्द्रावती ने अस्वीकार कर दी। उसने कहा, "वहू मास, शराब का सेवन करने वाला व्यक्ति मन्दिर में प्रवेश नहीं पा सकता।"

विवश उसके लिए नगर मे एक मकान देखा गया और वह वहां चला गया। मध्याह्नोत्तर रमेशचन्द्र सिन्हा अपने लिए दिए गए मकान में सामान रख भोजन इत्यादि कर आया तो उसने संसदीय कार्यालय हवेली में ही खुलवाने का प्रस्ताव कर दिया। उसके लिए सूरदास वाले कमरे का विचार किया गया, परन्तु उसकी चाबी कमता के पास रहती थी।

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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