उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
तृतीय परिच्छेद
: 1 :
सूरदास मन में यह अनुभव कर रहा था कि सेठजी के घर में रहने से उसके अपमान होने की सम्भावना है। उसको दो बातों से सेठजी के घर का वातावरण बदल रहा अनुभव हुआ था। एक तो कमला का उसे तिलक देना उसकी मां तथा भाई से पसंद नहीं किया गया था। उन्होंने तो स्पष्ट रूप में लड़की के इस कर्म को बुरा माना था।
सेठजी ने कमला के विषय में बात की थी। यद्यपि वे इस विषय में कमला के भावों का आदर करने को कहते थे, परंतु मन में वे भी ऐसा ही चाहते प्रतीत होते थे, जैसा उनकी पत्नी और पुत्र चाहते थे। वे कमला के व्यवहार को विवशता में स्वीकार ही कर रहे प्रतीत होते थे। उसे शीलवती का कथन अधिक युक्तियुक्त प्रतीत हुआ था। उका कहना था कि कमला का उसके प्रति सम्मोहन वासनामय है और वासना का भूत तो जन्म भर रह नहीं सकता। इसके सिर से उतरते ही कमला को अपने व्यवहार पर पश्चात्ताप भी लग सकता है।
सूरदास कमला के वासनाभिभूत हो रात के समय उसके साथ आकर सो जाने की बात जब स्मरण करता था तो उसका रक्त चाप बढ़ जाता था। यह ठीक था कि कौमार्य भंग होने से पूर्व ही उसे चेतना हो गयी थी और वह स्वेच्छा से उठ कर चल दी थी, परन्तु घर में रहते हुए यह आवेग पुन: आ सकता है और तब उसको समय से पूर्व चेतना नहीं भी हो सकती।
कमला की बात क़े अतिरिक्त सेठजी के घर में ऐसा विचार करने
वाले उत्पन्न हो गये थे जो राम-कथा और कीर्तन को उनके सासा अम्युदय के मार्ग में बाधक मानने लगे थे।
प्रकाशचन्द्र का यह मानना कि उसकी निर्वाचन सभाओं में राम-कथा एवं कीर्तन ने उसको बदनाम किया है, सूरदास को अखरने लगा था। यद्यपि वह अपने कीर्तन के उपरान्त अनुभव करता था कि श्रोतागणों और प्रशंसकों की सख्या बढ़ रही है परन्तु चक्षुविहीन होने से वह अपने अनुमान और अनुभव पर विश्वास नहीं करता था। यह सम्भव है कि उरसे श्रम हो रहा हो और वास्तव में ही वह उनका अकल्याण कर रहा हो।
इस पर भी वह समझ रहा था कि राम-कथा तो एक खराब बात नहीं हो सकती, भले ही उससे प्रकाशबाबू के निर्वाचनों में हानि पहुंची हो। प्रकाशबाबू का केवल दस सहस्त्र मतों से विजयी होना उसे विस्मय में डालने वाला था। परन्तु उसे इस बात से तो भारी धक्का लगा, जबउसे यह पता चला कि देश का कानून यह नहीं चाहता कि निर्वाचन की सुभाओं में राम नाम लिया जाये। इस सूचना पर तो वह बौखला उठा था और समझता था मानोवह इस दुनिया में नही किसी पागलखाने में हो।
जहां तक राजनीति का प्रश्न था, उसका ज्ञान इतना मात्र ही था कि भले, ईश्वर परायण, नेक विचार-आचार वाले लोगों के हाथों में राज्य की बागडोर होनी चाहिये। परन्तु दो सौ से। ऊपर सभाओं में राम गुण गान करने पर भी अधिकांश मत राम विरोधी जनों को मिले थे। यदि विरोधी मत कई प्रत्याशियों में बंट न जाते तो प्रकाशबाबू की राम-महिमा पराजित हो गयी थी। इस कारण वह समझ गया था कि कल्याण का मार्ग निर्वाचन सभाओं में राम-कथा कीर्तन का नहीं, यह कुछ और है।
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :