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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

: 8 :

 

परन्तु जब कमला आयी तो बात इतनी सरल नहीं रही। कमला अपने पिता के निवास स्थान पर रात के साढ़े दस बजे पहुंची। सेठजी सोने की तैयारी में थे, जब द्वार पर की घन्टी बजी। सेठजी ने बाहर निकल देखा कि अपना छोटा सा सूटकेस उठाये कमला खड़ी है। 

"ओह! आ गयी हो?''

''हां। आने में सुविधायें मिलती गयीं और मैं यहां तक पहुंच गयी हूँ।

दोनों भीतर कमरे में आ गये। नौकर ने टैक्सी विदा कर दी थी और दस रुपये के शेष वापिस करने आया तो भोजन के विषय में पूछने लगा।

''कुछ तो खाने को मिल ही गया है। यदि दूध मिल जाये तो काम चल जायेगा।"

जब नौकर चला गया तो कमला ने पूछ लिया, "यहां क्या काम है, जिसमें मेरी आवश्कयता पड़ गयी है।"

कौड]fयामल्ल ने मुस्कराते हुए कहा, "यहां एक योग्य वर मिल गया है, परन्तु तुम्हारी स्वीकृति के बिना बात कर नहीं सकता था।" 

''पर मैं तो विवाह न करने का निश्चय कर चुकी हूं।"

''तो परिवार कैसे चलेगा?"

''अब ईश्वर ने विश्वम्भर को भेज दिया है और मैं समझती हूं कि आपकी और माताजी की अभिलाषा पूर्ण हो जायेगी।"

''इस पर भी देख लो। ये लोग मुझे पसन्द हैं। वैसे धनी-मानी हैं और यदि तुम इन्कार कर दोगी तो उनको कुछ अधिक शोक नहीं होगा। यह तो मैं अपनी पसन्द के कारण ही कह रहा हूँ।"

''पर पिताजी। अब आपको मेरे विवाह की चिंता छोड़ देनी झाहिये। भगवान् की कृपा है कि भाभी अब विश्वभर में रुचि त्रेने लगी हैं। विमला भी उसकी देखभाल करती है। कुछ और बड़ा हो गया तो शिक्षा का अच्छे से अच्छा प्रबन्ध हो जायेगा! भैया से वह अधिक परिवार चलाने में योग्य होगा। आज भाभी की माता जी आयी थीं और लड़के को देख पसन्द कर गयी हैं। उन्होंने भाभी के विचार की सराहना की है और बच्चे को आशीर्वाद दिया है।

''वास्तव में यदि उनकी मोटर न मिल पाती तो मैं इस समय तक यहां न पहुँच सकती। दस बजे से कुछ ही पीछे घर से चलकर तीन बज कर पन्द्रह मिनट पर मैं हवाई जहाज के कार्यालय में पहुँच गई थी। सांयकाल के प्लेन से सीट भी तुरन्त मिल गयी।"

इस समय नौकर दूध ले आया था। साथ दो टोस्ट थे। कमला ने दूध ले लिया, टोस्ट नहीं लिये। जब वह दूध पी चुकी तो सेठजी ने उसे अपने बगल वाले कमरे में ले जाकर कहा, "अब तुम आराम करो। लड़के और लड़के की मां से भेट कल किसी समय हो सकेगी और यदि कुछ निश्चय हो सका तो विवाह एक सप्ताह के भीतर हो सकेगा।"

"पिताजी! बहुत कठिन है। आप यह समझ लें कि मेरे निश्चय में परिवर्तन अति कठिन हैं। कोई घोर विवशता ही हो तो बात दूसरी है। इस पर भी मैं आपसे यही कहूंगी कि मेरे विवाह न करने से आपको कुछ भी कष्टतथा हानि नहीं होगी।"

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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