उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
: 4 :
श्रीमती के पिता धन्नाराम को प्रकाशचन्द्र सूचित करने कासगंज जा पहुंचा कि उस पर पटीशन हो गयी है और उसे विश्वास हो रहा है कि यह पटीशन ज्योतिस्वरूप ने ही करायी है।
इस बार श्रीमती भी उसके साथ थी। वह विश्वम्भर को भी साथ ले गयी।
श्रीमती और बच्चा तो भीतर चले गये और प्रकाश बाहर श्वसुर के पास बैठक घर में ही बैठ गया।
''आओ प्रकाश! कुछ सूचना आयी है बम्बई से?''
''हां, कमला बम्बई परसों रात ही पहुंच गयी थी। कल उसका टेलीफोन कार्यालय मैं आया था। आज हम पत्र की प्रतीक्षा में थे। मैं तो डाक आने के समय से पहले ही चला आया हूँ।"
''क्या वह ठीक है कि तुम पर पटीशन दायर कर दी गयी है?"
"जी। आपको किसने बताया है?"
''ज्योतिस्वरूप ने ही परसो बताया था और कहते थे कि बह उस व्यक्ति को नहीं जानते।"
"इस पर मी यह सत्य है कि उनको मुझसे पहले पता था कि पटीसन हो गयी है। वह इस बात की सूचना वेने दिल्ली प्रधान मन्त्री और अन्य नेताओं से मिलने गये थे जिससे मेरे निर्वाचन रह होने पर उनको कांग्रेस का टिकट मिल सके।"
''बहुत दुष्ट है वह!"
''दस सहस्त्र रुपया पी गया है।"
"ज्यातिस्वरूप कब दिल्ली मिला था?"
''मई की छः तारीख को प्रधान मन्त्री जी को कोठी पर। मेरे सामने उनकी जो बात प्रधान मन्त्रीजी से हुई, उससे मुझे तो यही समझ आया है कि वह कांग्रेस के सदस्य तो बदायूं में ही बना है और दिल्ली नेताओं से टिकट लेने के लिये गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि पटीशन सफल हो जाने पर उसे टिकट मिलने का आश्वासन मिल चका है।"
"एक बात तो मानमी पड़ेगी।" सेठ ने कह दिया, "वह यह कि प्रधान मन्त्री रुपए बालों से अधिक अपने विचार वालों को मानते हैं। ज्योतिस्वरूप की तुम्हारे सामने क्या गणना है? तत्व की बात यह है कि वह समाजवादी है और तुम एक धनी बाप के बेटे हो।"
''यह तो ठीक है पिताजी! परन्तु जब धन की आवश्यकता होती
है तो उनको मिलता हम लोगों से ही है। मुझे बताया गया है कि इस निर्वाचन में उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों से एक करोड़ रुपये के लगभग एकत्रित किया गया था।''
''वैसे तो हमारी फ़र्म ने भी एक लाख रुपया दिया था।"
''हां, प्रधान मन्त्री ने अपने एक काम के लिये बीस सहस्त्र रुपया मांगा था। जब मैंने रुपया दे दिया तो उन्होंने कह दिया कि मेरे विरुद्ध पटीशन हो गयी है।"
''यही तो मैं कह रहा हूं कि कांग्रेसी विशेष रूप में हमारे प्रधान मन्त्री सिखन्त के पक्के हैं और व्यक्तिगत सम्बन्धों को गौण मानते हैं।"
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :