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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

: 6 :

 

प्रकाशचन्द्र लोक सभा में बैठने के लिये शपथ लैने दिल्ली चला गया। सेठजी को अब घर फीका-फीका प्रतीत होने लगा था। घर मैं नित्य हरि कीर्तन और तानपुरे तथा करताल की ध्वनि उठा करती थी। पिछले सात-आठ वर्ष से घर में संगीत का मधुर स्वर भरा रहता था। वह अब एकाएक मौन हो गया था। सेठजी ने सूरदास के कमरे को ज्यों का त्यों बन्द करवा दिया था। हवेली के सामने का मकान बनकर लगभग तैयार हो चुका था। रंग-रोगन हो रहा था। उसे

शीघ पूर्ण करने की आज्ञा हो गयी थी।

कमला नियमित कार्यालय में कार्य कर रही थी। इन दिनों सेठजी किसी कार्य से लखनऊ गये थे और चार दिन वहां रहकर लौटे। उन्होंने घर में पहुँचते ही पत्नी से पूछा, "सुन्दरदास का समाचार आया?''

"जी नहीं। उसे गये आज छ: दिन हो गये हैं। कल सप्ताह समाप्त हो जायेगा। यदि वह कल तक न लौटा तो हरिद्वार चलकर पता करना चाहिये।"

सेठजई ने कार्यालय में पहुँच कमला से भी पता किया, "कमला। सूरदास का कोई समाचार मला है?"

"जी। मेरे पास तो नहीं आया।"

"सुन्दरदास भी नहीं लौटा।"

'"चिंता किस बात की है? वह आ जायेगा और समाचार मिल जायेगा।"

सेठजी इसका यह अर्थ समझे कि कमला को जाने से पूर्व सूरदास किसी प्रकार का आश्वासन दे गया है और इसी कारण वह सदा प्रसन्न प्रतोत होती है। अब उसका यह कहना कि समाचार आ जायेगा,' यही प्रकट करता था। अतः वह चुप कर रहे।

दिल्ली से प्रकाशचन्द्र का समाचार आया कि वह अभी नार्थ एवैन्यू के एक क्वार्टर में ठहरा हुआ है, परन्तु यह क्वार्टर इतना छोटा है कि वह उसमें दम घुटता पाता है। वह वहां कोई बड़ा मकान ढूंढ रहा है। कोई अच्छा मकान मिलते ही वह श्रीमती को वहां बुला लेगा और फिर माताजी तथा पिताजी के लिये भी आकर ठहरने का प्रबंध हो सकेगा।

यह समाचार सेठजी ने पत्नी को रात के भोजन के समय दिया। इस पर चन्द्रावती ने पूछ दिया। "कमला के विषय में भी कुछ लिखा है?" 

"उसके तो नाम का भी पत्र में उल्लेख नहीं। देखो चन्द्र, मुझे तो यह समझ आया है कि इस पत्र में उसने हमें भी वहां आने से मना कर दिया है।"

"इसमें क्या कारण हो सकता है?''

"कुछ तो कारण होना चाहिये। मैं डस विषय में पता करूंगा। क्यों कमला, प्रकाश का तुम्हें राम-राम भी न लिखना कैसा लगा है?''

"पिताजी। यदि भैया कुछ लिखते तो मुझे विस्मय होता। उन्होंने मुझे कभी भी, न कहीं बाहर से, न ही घर में रहते हुए आशीर्वाद दिया है। मैं अब उनसे किसी प्रकार की आशा तथा अकांक्षा नहीं रखती।"

चन्द्रावती ने बात बदल दी। उसने पूछ लिया, "अब नये मकान का क्या होगा?"

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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