उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
|
0 5 पाठक हैं |
गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
: 7 :
संगीताचार्य ने दूध पीते हुए कहा, ''मैं समझता हूं कि राम भैया अब तैयार हो गये हैं। यह किसी भी सभा मे जाकर शोभा पा सकते हैं।"
उत्तर प्रकाशचन्द्र ने दिया, "हाँ, अब इनको दिन-रात सभाओं मैं जाना होगा।"
"मेरा अभिप्राय तो संगीत-सभाओं से है।"
"वह हम पीछे देख लेंगे। देखो, राम। मैं आज किसी काम से मुरादाबाद जा रहा हूं। तीन दिन में लौfऋ गा। उसके उपरान्त हम अपने प्रचार का कार्यक्रम बनायेंगे।"
मां ने पूछ लिया, "प्रकाश। मुरादाबाद में क्या काम है?''
"मां। वहां एक मित्र है। वह पिछले निर्वाचनों मैं उत्तर प्रदेश की विधान सबा का सदस्य निर्वाचित हुआ था। मैं उससे इस विषय में सम्मति करने जा रहा हूं।"
''तुम्हारे पिता आज शारदा मौसी के पोते भागीरथ को बुलाने वाले हैं। वह परसों तक आ जायेगा। उस समय तुम भी यहां रहते ता ठीक था।"
''मैं तीसरे दिन लौट आऊंगा। परन्तु मां, मैं समझता हूं कि जिस कार्य के लिये तुम उसे बुला रही हो, वह सफल नहीं होगा?''
''क्यों?''
''मैं तुमसे पृथक में बात करूंगा।" उसने सूरदास को सम्बोधन कर कहा, "राम आजकल कथा में तनिक रामराज्य की बात करनी चाहिये। मैंने सूर्यकान्त को कह दिया है कि वह तुम्हारे रामराज्य को पण्डित नेहरू जी के समाजवाद का रूप बता दिया करेगा।"
सूरदास ने अपनी बडी-बड़ी आंखें सामने बैठे प्रकाशचन्द्र की ओर घुमाईं और मुस्कराकर कहा, "भैया। आचार्यजी गीता और उपनिषद् पढ़ाने आते हैं। वे तो समाजवाद के विषय में कुछ और बताते थे।"
''ठीक है। आचार्ययी राजनीति नहीं समझते। इस कारण जो कुछ महात्मा गांधीजी कह गये हैं, वह ही ठीक है। आचार्यजी भला क्या जानते हैं?"
सूरदास चुप रहा। अल्पाहार का समय हो गया था और सब उठ हवेली की ऊपर की मंजिल पर खाने के कमरे में चले गये। कमला की इच्छा थी कि वह पीछे रह जाये। मां ने उसे उठते हुए देख पूछ लिया, "कमला। अल्पाहार नहीं लोगी?''
''मां लूंगी। आप सब चलो, मैं अभी आती हूँ।"
''अच्छा, शील।'' मां ने अध्यापिका की ओर देखकर कहा, "तुम कमला को लेकर आ जाना।"
इसका अभिप्राय यह था कि अध्यापिका कमला और सूरदास पर जासूसी करे और पीछे बताए कि वे क्या बातें करते रहते हैं। कमला इसका अर्थ समझ रही थी।
जब सब चले गये तो कमला ने अपनी अध्यापिका की ओर देखकर कहा, "तो अब अध्यापिका शिष्य पर जासूसी करेंगी।"
शीलवती ने कह दिया, ''यदि कमला बहन अपनी माताजी की
देख-रख को जासूसी मानती हैं तो मेरे विषय में भी वही कुछ ऐसा ही समझ सकती हैं, परन्तु मैं कहती हूँ कि देख-रेख जासूसी नही कहाती।"
''बहनजी।'' कमला ने स्वभाववश युक्ति करते हुए कहा, "मैं देख-रेख से मना नहीं कर रही। मैं आपकी शिक्षा और प्रेरणा का विरोध करने की बात भी नहीं कह रही। मैं तो यह कहती हूं कि हमारी बातों को माताजी के सामने जाकर बताना जासूसी होगी।"
"यदि तो तुम मेरा कहा मानो तो मैं फिर किसलिये माताजी के सामने शिकायत करूगी...।"
"तो आज तक आपको किसी युक्तियुक्त बात को मानने से इन्कार किया है?''
''परन्तु अयुक्तियुक्त बात भी मैंने कभी कही है?"
|
- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :