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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

: 7 :

 

सेठजी के घर में हर्ष शोक के अवसरों पर यदि कोई अप्रभावित रहता था तो प्रकाश की पत्नी श्रीमती। जब से उसका विवाह हुआ था और वह इस घर में आयी थी, वह घर भर से तटस्थ पड़ी रहती थी। जब वह गर्भपात करवाने गयी थी, तब भी वह परिणामों से अलिप्त ही थी। पीछे वह बीमार हुई और उसका आपरेशन कर

गर्भाशय निकाला गया तो भी उसके एक रूस जीवन में किसी प्रकार का अन्तर नहीं पड़ा था। उसके मन में कुछ हलचल मची थी, जब उसको विदित हुआ था कि कमला उसकी ननद का प्रेम अन्धे कथा करने वाले नयनाभिराम से हो गया है, परन्तु यह हलचल तो केवल मात्र इस कारण थी कि उसके एकरस जीवन में इससे अन्तर पड़ने की सम्भावना थी। कुछ हलचल उसके मन में उस समय हुई थी जब उसे पता चला कि उसके पति ने एक अन्य स्त्री को बम्बई में रखा हुआ है। और उस स्त्री को उसके पति से एक लड़का है। इस हलचल का कारण भी उसके अपने सुख आराम में अन्तर पड़ जाने की सम्भावना थी। 

आज उसकी निजी नौकरानी रामी ने उसे सुन्दरदास के बिना सूरदास के लौट आने की सूचना दी थी। इस पर श्रीमती ने रामी से कहा था कि वह जाकर पता करे कि सूरदास को कहां छोड़ आया है? जब सुन्दरदास सूरदास के लापता होने की बात कमला को बता रहा था तब रामी सुन्दरदास की पत्नी से सूरदासकी बात जानने का यत्न कर रही थी। जो कुछ उसे पता चला उसने श्रीमती को आकर बता दिया।

उसने कहा, "सुन्दरदास की पत्नी कहती है कि हरिद्वार में उसका पति स्नान कर पूरी बनवाने गया था कि पीछे से सूरदास लापता हो गया है। सुन्दरदास उसको ढूंढता रहा है, परन्तु वह नहीं मिला और निराश हो वह लौट आया है।"

श्रीमती ने कथा सुनी और जैसे किसी बहुत अन्तर पर किसी के रोने का शब्द सुन एक क्षण उस विषय में विचार कर फिर उसको मन से निकाल कोई अपने काम में लग जाता है, वैसे ही श्रीमती अपने मन के संसार में जा पहुंची।

वह जानती थी कि सूरदास से उसकी ननद का मोह है। ऐसा प्रकाशचन्द्र ने उसे बताया था। इसे सुनकर भी सूरदास के लापता होने पर कमला के मन पर क्या प्रभाव हुआ होगा, उसके मन में नहीं आया और वह अपने स्वप्न लोक में लीन हो गयी।

उसी दिन उसको प्रकाशचन्द्र का पत्र आया था कि वह नार्थ एवेन्यू के एक क्वार्टर में टिक गया है। वह पण्डित जवाहरलाल जी से मिला है। पंडितजी अभी तक भूले नहीं कि मैं राम-कथा कीर्तन करता हुआ संसद सदस्य बना हूं। समय निश्चय कर मैं उनके निवास- स्थान तीन मूर्ति में पहुंचा तो चपरासी मुझे उनके कमरे के सामने खड़ाकर बोला, "भीतर जा सकते हो।"

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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