उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
मां ने सामने भूमि पर बैठते हुए वहां आने का कारण बता दिया, ''नींद नहीं आ रही थी। इस कारण उठ कुछ करने के विचार से कमरे से बिकली थी। तुम्हारे कमरे में प्रकाश देख यहां ही चली आयी हूं।''
''मां!'' अब कमला ने अपनी बात बता दी, ''जब नींद नहीं आयी तो चित्त को शान्ति देने के लिए पूजा पर बैठ गयी थी, परन्तु आज तो उसमें भी ध्यान नहीं रहा।''
''देखो, मैं एक बात विचार कर रही हूं। दिन निकलते ही सेठजी को तार दे दो। लिख दो कि शीआतिशीघ्र आ जाये।
''मै समझती हूं कि वह अगले दिन प्रातःकाल तक आ जायेंगे और फिर राम को ढूंढ़ने का यत्न करेंगे।''
''यह तो मैं भी विचार कर रही हूं, परन्तु यह काम सुगम नहीं। साथ ही भय है कि कहीं उन्होंने स्वयं जल-प्रवाह ले लिया हो अथवा किसी ने उनको समाप्त कर देने में अपना हित समझा हो, तो उन्हें कहां ढूढ़ सकेंगे?''
"इस पर भी कमला! ढूँढना तो कर्त्तव्य है। पूरा करना ही चाहिए। केवल प्रतीक्षा करना तो फीका काम है।"
कमला स्त्री वर्ग में होने से ढूँढने के कार्य में कठिनाई अनुभव करती थी, परन्तु वह कठिनाइयों को पार करने का उपाय नहीं पा रही थी। एक मार्ग चन्द्रावती ने बताया कि सेठजी को बुला लिया जाये और उनका ढूँढने के कार्य में कठिनाई पार करने में सहयोग प्राप्त किया जाये।
इससे एक क्षीण सी आशा उसके मन में बनी थी। अभी तक तो वह ढूंढने की कठिनाई को अनुभव कर इस कार्य को परमात्मा के भरोसे छोड़ अपने विषय में विचार करने लगी थी। वह स्वयं घर बार छोड़ सन्यास ग्रहण करने की दिशा में सोचने लगी थी।
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :