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उपन्यास >> अंधकार

अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

''और वह कौन था?''

''वह अभी भी जीवित है और ऐसा प्रतीत होता है कि अब तुमको ढूँढ रहा है। पिछले वर्ष वह यही आया था और मुझसे तुम्हारे विषय में पूछताछ कर रहा था। वह एक स्त्री है और तुम्हारी मां है। नाम तारकेश्वरी देवी है।"

''मैं कृष्णदास से पता करने गयी थी, परन्तु उसने बताया नहीं। इस वर्ष वह पुन: आयी थी और मुझे दो सौ रुपये इस कार्य के लिये दे गयी कि तुम कही दिखायी दो तो उन्हें तुरन्त तार देकर सूचित कर दूं।"

''परन्तु मां! पहले यह बताओ कि वह कौन है?''

''अवश्य किसी बहुत ही धनवान् व्यक्ति की स्त्री प्रतीत होती है। बहुत सुन्दर है और धर्म कर्म करने वाली है।"

''तो उसने मुझे छोड़ क्यों दिया था?''

''तुम्हें घर रखने में कुछ असुविधा रही होगी। क्या असुविधा थी, यह तो वह ही बता सकेगी। मैं तो इतना जानती हूँ कि तुम्हारे पालन-पोषण के लिये एक सहस्त्र रुपया वार्षिक देती थी और जब संत माधवदासजी ने उनको लिखकर भेजा कि लड़का सुन्दर, स्वस्थ, परंतु दृष्टि विहीन है और उनके आश्रम में पहुँच गया है तो उस धर्मात्मा जीव ने हमें दस सहस्त्र रुपया दिया कि हम अपना मकान पक्का और सीमेण्ट का बनवा लें। उनका कहना था कि वह कभी-कभी लड़के को देखने आया करेगी।

''मकान का नक्शा उन्होंने बम्बई से बनवा कर भेजा और एक मिस्त्री भी भेजा। मकान बना। उस पर पच्चीस हजार व्यय हुआ। यह वही मकान है। तुम्हारी जन्मदात्री इस मकान में रहने कभी नहीं आयी। पिछले वर्षं आयी थी, परंतु स्टेशन पर रिटायरिंग रूम में ठहरी थी। उससे पिछले वर्ष भी वह आयी तो किसी अन्य स्थान पर ठहरी थी।

''तुम्हारे बाबा का देहांत हो गया है और मैं मकान के बाहर दुकानों के भाड़े से निर्वाह करती हूँ।"

"देखो मां! मैं वहां जहां रहता था, लौटकर जाना नहीं चाहता। वहां का एक सेवक मेरे साथ था। सेठजी बहुत सज्जन और राम भक्त व्यक्ति हैं, परतु किसी कारण से उनके पुत्र और लड़की के मन में विकार उत्पन्न हो गया है। इस कारण मैं वहां से चला आया हूँ। उन्होंने तो वह सेवक रूपी डोर मेरे साथ बांध रखी थी, परंतु मैं उसे तोड़ आया हूं। अब वह डोर सेठजी समेट लेंगे और मैं उनसे स्वतंत्र हो जाना चाहता हूं। अत: उन देवीजी को तार भेज दो मैं जानना चाहूंगा कि वह मुझसे क्या चाहती है? तब उनके स्थान पर जाकर रहने का निश्चय करूंगा।"

उस स्त्री ने मकान के बाहर हलवाई से पूरी बनाने को कह दी मौर स्वयं डाक घर में तार देने चली गयी। लौटते हुए वह पूरी ले आयी और सूरदास को भोजन कराया।

तदनंतर वह बम्बई की तारक्एश्वरी देवी की प्रतीक्षा करने लगी। उसने तार मे लिखा था, "राम मिल गया है। तुरंत आ जाइये।"

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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