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उपन्यास >> अंधकार

अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

"पिता जी! यह अकारण तो है नहीं।"

''कमला! तुम मौन रहो और जो कुछ यहां हो रहा है अथवा होने की आशंका कर रही हो, उससे अलिप्त भाव में बैठी रहो। तुम तो बहुत ज्ञान की बातें करती थीं, आज विवेक छट रहा है?"

''मुझे यहां अन्धकार छा रहा दिखायी देता है।''

''पर हम अन्धे नहीं है जो अपना मार्ग पा नहीं सकेंगे। चुप रहो। वे दोनों आ रही हैं।"

तारकेश्वरी और प्रियवदना पुन: ड्रायंग रूम में लौट आयीं। दोनों के मुखों पर गम्भीर मुद्रा स्पष्ट दिखायी देती थी। अब सेठजी ने वास्तविक बात की चर्चा से बचने के लिये अपने सन्यास लेने की योजना का आरम्भ और वर्तमान स्थिति बतानी आरम्भ कर दी। तारकेश्वरी को यह व्यर्थ की बात अब सुखकर प्रतीत होने लगी थी। वह चुपचाप सुनती रही। सेठ कौड़ियामल्ल अपनी बात को इतना विस्तार देता गया कि पौने नौ बज गये। सूरदास ने कीर्तन बन्द कर दिया था और मृदुला उसका हाथ पकड़े हुए ड्रायंग रूम में ले आयी। उनके आते ही तारकेश्वरी ने सुख का सांस लिया और उठते हुए कहने लगी, "आइये, अल्पाहार का समय हो गया।"

अल्पाहार की मेज पर बैठे-बैठे भी सेठ और तारकेश्वरी इधर-उधर की बातें करते रहे। सूरदास के विषय में चर्चा नहीं चली। अल्पाहार समाप्त कर सब उठे, हाथ धोकर सेठ जी ने खाने के कमरे के बाहर खड़े हो कहा, "मैं चाहता हूं कि आप सब रात के भोजन पर मेरे यहां आयें। वहां मैं शेष प्रबन्ध के विषय मैं विचार करूंगा।"

''इस समय सूरदास ने कहा, "पिताजी! ठीक है, परन्तु मैं समझता हूं कि मां को आज तो अवकाश है नहीं। हम सबने सायंकाल एक स्थान पर जाना है।"

तारकेश्वरी सूरदास का आशय समझ गयी और वह सेठजी के कुछ भी कहने से पूर्व ही बोली, "मैं कल किसी समय आपको टेलीफ़ोन पर बता दूंगी कि कब और कहां पुन: हम मिल सकते हैं।''

इस पर सेठ जी ने उनसे विदा मांगी। कमला ने सामने खड़े सूरदास के झुककर चरण स्पर्श किये और सेठ जी के साथ लिपट की ओर चल पड़ी। उनको नीचे छोड़ने तारकेश्वर गयी। उसने कमला की पीठ पर प्यार देते हुए कहा, ''कब तक यहां ठहरने का विचार है।"

"वहां काम तो बहुत है। अपने व्यवसाय का केन्द्रीय कार्यालय है, उसकी देख-रेख पिता जी ने मुझे सौंप रखी है। साथ ही राम मन्दिर है और ध्यन्थ क्षेत्र है। मैं तो शीघ्रातिशीघ्र लौटने के विचार से आयी थी; इस पर भी पिताजी की इच्छा पर बहुत कुछ है।''

ये लोग मोटर में सवार हो अपने घर चले आये। चार दिन तक प्रतीक्षा करते रहे, तारकेश्वरी का टेलीफ़ोन नहीं आया। इस पर कमला ने बदायूं लौटने की तैयारी कर दी। हवाई जहाज पर सीटें बुक करा ली गयीं। सेठ जी भी वहां लौट जाने काविचार बना बैठे थे। कमला की इच्छा थी कि वह बम्बई से जाने के पूर्व राम के चरण स्पर्श करने जाये। सेठ जी ने कुछ विचार किया और फिर कहा, "ठीक है। तुम गाड़ी लेकर चली जाओ और देखो शीघ्र लौट आना। हम यहां से ढाई बजे रवाना हो जायेंगे। तुमको दो बजे तक आ जाना चाहिये।"

"मैं पहले ही लौट सकने की आशा रखती हूं।''

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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