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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

जिन दिनों श्रीमती तपेदिक से बीमार थी, प्रकाश का सम्पर्क विमला से बना था और उसके लिये प्रकाश ने एक मकान भाड़े का उसकी मां के मकान के समीप ले लियो था। दोनों उस मकान में परस्पर मिलते रहते थे। विमला के गर्ग ठहरो तो प्रकाश उसे बम्बई ले गया। वहां भी उसने एक मकान भाड़े पर लेकर इसे उसमें ले जाकर रख दिया।

विमला के आने पर श्रीमती की उससे भेंट करा दी गयी। श्रीमती ने विमला को और उसके पुत्र को नजर भर कर देखा तो एक क्षण तक तो उनमें सजीव रुचि प्रकट की, परन्तु तुरन्त ही वह अपने को असम्बद्ध मान पुन: अपने विचारों में डूब गयी। एक आध दिन के उपरान्त तो जब भी विमला उसके कमरे में जाती थी, वह मुरव दीवार की ओर कर लैटी रहती थी।

आज भी वह वहां गयी। श्रीमती ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठ माथे पर बिन्दी लगा रहो थी। विमला ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा, "बहन जी, नमस्ते।"

श्रीमती ने उसके मुख पर देखा और पूछ लिया, "वह बन्दर कहां है?" उसका अभिप्राय उसके बच्चे से था।

विमला ने कहा, "मां जी ने उसके लिये एक दायी रख दी है।"

श्रीमती ने एक दीर्घ निःश्वास छोड़ा और अपने स्थान से उठ पलंग पर जा लेटी और मुख मोड़ कर लेटी रही। विमला क़ुछ देर तक तो बैठी रही। इस समय उसकी दृष्टि ड्रेसिंग टेबल पर पड़े पत्र पर चली गयी। वह प्रकाश चन्द्र की लिखावट पहचानती थी, अतः यह देखने के लिये कि पति-पत्नी में कैसे सम्बन्ध हैं, उसने पत्र उठाया और पढ़ना आरम्भ कर दिया। पत्र पढ़ उसको विस्मय हुआ। उसमें प्रकाश

ने लिखा था, "मैं कासगंज तुम्हारे पिता जी से मिलने जा रहा हूं और वहां से बदायूं आऊंगा।"

विमला ने पत्र पर तारीख पढ़ी। वह तार से एक दिन पहले की थी और उसे पता था कि प्रकाशचन्द्र का तार एक ही दिन पूर्व आया था कि उसे दो सप्ताह तक घर आने के लिये अवकाश नहीं। इस पर उसे दुःख हुआ। वह यह नहीं जानती थी कि उसके बदायूं में होने की बात उसको विदित है अथवा नही? इससे वह यह नहीं कह सकी कि प्रकाशचन्द्र ने बदायूं न आने की बात उसके कारण लिखी है अथवा पिता से नाराज़ होने के कारण।

एकाएक उसके मन में एक विचार आया। उसने पत्र उठाया और कमरे से बाहर निकल आयी।

अब तक विमला का सम्पर्क शीलवती तथा कमला से हो चुका था और उसे कमला की संगत में रस मिलने लगा था। सेठानी जी से तो वह अभी तक संशय मन थी। सेठजी को वह सेठानीजी से अधिक स्नेहपूर्ण मानती थी।

विमला श्रीमती के कमरे से निकली तो कमला के कमरे में जा पहुंची। कमला कार्यालय से आयी थी और अध्यापिका के साथ बैठी चाय पी रही थी। कमला ने उससे पूछ लिया, "विमला बहन। आओ, चाय पी लो।"

''मैं माँजी के साथ चाय ले आयी हूं। मैं अध्यापिका बहन जी से एक बात पर सम्मति करने आयी हूं।"

"हां, बताओ।" शीलवती ने पूछ लिया।

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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