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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

विमला ने कहा, ''कल दिल्ली से तार आया था कि कमला के भाई साहब को दो सप्ताह तक दिल्ली से बाहर जाने का अवकाश नहीं है और एक यह पत्र है। यह भी पढ़ लीजिये।"'

शीलवती ने पत्र पढ़ा और पूछ लिया, "यह कहां मिला है? यह तो भाभी के नाम है।"

''मैं उनको नमस्कार करने गयी थी और सदा की भान्ति उन्होंने मुझे मेरे बच्चे के विषय में पूछा और फिर पलंग पर लेट मुख दीवार की ओर कर लिया। मैं वहां कुछ समय तक बैठी रही और आने लगी तो मेरी दृष्टि इस पत्र पर पड़ गयी। मैंने पढ़ा है, परन्तु यह नहीं जान सकी कि यह विरोधी वक्तव्य मेरे कारण है अथवा उनके पिता जी से विरोध के कारण?''

शीलवती ने पत्र को पुनः पढ़ा और पढ़कर विचार मग्न हो गयी। वह विमला के मन के भावों का अनुमान लगा रही थी। कुछ विचारकर उसने कह दिया, "प्रकाश भैया पिताजी से इतने नाराज़ नहीं जितने कि सूरदास से थे। वे यहां रहते थे और कुछ दिन हुए हैं, यहां से लापता हो गये हैं। प्रकाशजी को बता दिया गया है कि सूरदास लापता हो गया है। अत: यह कहना कि प्रकाशजी ने पिताजी से कुछ छुपाने के लिये यह झूठ बोला हो अथवा किसी अन्य कारण से, कहना कठिन है।

''विमला बहन! तुमने उनको दिल्ली कोई पत्र लिखा है?''

"यहां आकर तो नहीं लिखा। बम्बई से लिखा था। वह भी पिता जी के मिलने से पहले। मैंने वहां से उनको लिखा था कि जेब में एक पैसा नहीं। पांच सौ रुपया तुरन्त भेज दें तो दिल्ली आ सकती हूँ। वहां उत्तर आने के पूर्व ही पिताजी मिल गये और फिर मैं वहां उनके उत्तर की प्रतीक्षा कर रही थी कि एकाएक पिताजी यहां आने लगे तो मुझकी भी साथ ले आये।''

''मैं समझती हूँ कि तुम उनको एक पत्र लिख दो कि उनके पिता तुम्हें यहां ले आये हैं और वह यहां तुएन्त चले आयें।"

"मेरा विचार था कि पिताजी ने अवश्य लिखा होगा।"

''यह तो उनसे पता करना चाहिये।"

''वह कार्यालय से आ गये होंगे। मैं जाकर पता करती हूं।"

''पर यह बताओ कि यदि भैया ने तुमसे न मिलने के लिये यहां न आ सकने का तार भेजा हो तो क्या करोगी?''

''यह तो सारी बात जान लेने के उपरांत ही बता सकूँगी। जो कुछ मेरे साथ पिछले तीन मास में बीता है, उसका स्मरण कर तो दिल इस संसार से उचाट ही होता जाता है।''

सेठजी नीचे ड्रायंग रूम में किसी से बातचीत कर रहे थे। सेठानी अपने कमरे में बैठी थी। विमला ने वहां पहुंच यह जानने की इच्छा

की कि उन्होंने उसके विषय में अपने पुत्र को कुछ लिखा है अथवा नहीं?

सेठानीजी ने पूछ लिया, "किसलिये पूछ रही हो?''

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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