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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

बिमला ने वही पत्र जो यह श्रीमती के कमरे में से उठा लायी थी, सेठानीजी के सामने रखकर कहा, "मैं इसका अर्थ लगाने के लिये पूछ रही हूं।"

सेठानी ने पत्र पढ़ा और विस्मय में सामने बैठी बिमला से पूछ लिया, "इसका अर्थ लगाकर क्या करोगी?''

''मैं जानना चाहती हूं कि आपके पुत्र मेरे प्रति क्या विचार रखते हैँ? जीवन अब नीरस होता जा रहा है। इस कारण कुछ तो करना ही पड़ेगा जिससे इस नीरसता का अन्त हो सके।"

''देखो विमला! तुम तो इस घर मे बचपन में भी आती रही हो और तुम्हारे पहले तुम्हारी माताजी भी इस घर में आया करती थीं। इससे तुमको समझ जाना चाहिये कि सेठजी तुममें विशेष रुचि रखते हैं। यही कारण है कि वह तुमको इस घर में लै आये हैँ 1

"उनकी इच्छा थी कि तुम्हारी मां तुम्हें अपने धर में रख लेती, परन्तु उनके मन में सेठजी के प्रति द्वेष उत्पन्न हो चुका है। उस द्वेष का प्रदशैन तुम पर हुआ है और तुमको उन्होंने अपने धर नहीं रखा। "तुम्हारी माताजी के इन्कार करने पर भी सेठजी तुमको यहां ले आये हैं। इस कारण प्रकाश के व्यवहार के अतिरिक्त भी हम तुमसे स्नेह रखते हैं और तुम्हारे हित ही में काम कर रहै हैं।"

इस सब बात से विमला को जहां सन्तोष हुआ, वहां एक संशय भी उत्पन्न हुआ। उसने इस संशय का निवारण करने के लिए पूछ लिया,"पर माताजी यहां आती रही हैं और फिर मैं भी आती रही हूं, इसका क्या सम्बन्ध है मुझे पुन: इस घर मेँ लाने का?''

"परिवारों का सम्पर्क तो कारण है ही, परन्तु कुछ और भी हो सकता है। वह ही मुख्य कारण है, जिसने मेरे और सेठजी के मने में गम्भीर हलचल मचा रखी है।

''सेठजी ने प्रकाश को तुम्हारे जन्म का पूर्ण इतिहास लिखकर भेज दिया था और यह उसके विचार करने का विषय है कि वह तुम्हारे विषय में क्या सोचता है? इसी कारण उसे पत्र देने के दो दिन उप- रान्त तुरन्त आने के लिये तार भेजा था।

''उसके उत्तर का अभिप्राय हम यह समझे हैं कि वह पूर्ण स्थिति पर विचार करने के लिए समय चाहता है।"

विमला अपने जन्म के रहस्योद्घाटन की ओर संकेत से स्तब्ध बैठी रह गयी। वह कितनी ही देर तक चन्द्रावती का मुख देखती रही। उसके होंठ सूख गये थे और आँखें खुली की खुली रह गयीं।

चन्द्रावती उसके मन के भावों को समझ कहने लगी, "पहले तो मेरा और सेठजी का विचार था कि तुम दोनों को तुम्हारे जन्म का रहस्य न बताया जाये, परन्तु बहुत विचारोपरान्त हम इस परिणाम पर पहुँचे हैं कि इस रहस्योद्घाटन से जो बदनामी सेठजी की तथा परिवार की होगी, उसको सहन करम हो हमारे पाप का प्रायश्चित होगा। पाप को झूठ के ढकने में छुपाकर रखने से तो पाप की दुर्गन्ध फैलेगी और वह केवल परिवार को ही नहीं, वरन् सम्पर्क में आने वाले सबको भ्रष्ट कर देगी। अत: सेठजी ने अपने पुत्र को बता दिया है और मैं तुमको यह रहस्य बता रही हूं।"

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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