उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
''हां, वह पलंग के काटने से पता चली थी। अब उसका सम्बन्ध भी बहन प्रियवदना से जानकर बना लूंगा। वैसे दोनों मातायें तो कह गयी हैं कि उनको बहुत रस आया था। माता धनवती उठकर मेरे कमरे में ही आ गयी थी। जब मैं अभी कीर्तन ही कर रहा था तो किसी के कपड़ों की सरसराहट सुनायी दी थी, परन्तु माँ के यहां होने का भास तब हुआ था, जब कीर्तन समाप्त हुआ।
''कीर्तन समाप्त कर मैंने यह तकिये के पास रखी घण्टी का बटन दबाया कि वह बोल उठी, 'क्या चाहिये राम?"
''मां! तुम यहां कब से हो? मैंने अपने सन्देह का निवारण करने के लिये पूछा। वह बोली, 'दो घण्टे हो गये हैं। बहुत मधुर स्वर है तुम्हारा राम।"
''सब राम जी की कृपा है।"
''हां तो क्या चाहिये?''
"रात मृदुला को मैंने कहा था कि प्रात: सात बजे एक प्याला चाय अथवा दूध लूंगा। अत: मैं यह बताने ही वाला था कि मृदुला चाय ले आयी थी। उसी समय छोटी मां भी आ गयीं और कहने लगीं, ''राम! तुम तो एक अनमोल रत्न हो।"
"अतः मैंने समझा था कि बहन प्रियवदना पर भी मेरे राम-रौले का सुखद प्रभाव ही हुआ होगा।"
''पर मैं सोने और जागने की बात नहीं पूछ रही।''
"तो बहन, पूछो।"
''कुछ तो बूआ धनवती ने बताया है। कहोने बताया है कि कैसे
आपके दृष्टि विहीन होने की बात उन्हें तब ज्ञात हुई थी, जबकि आप अभी तीन मास के ही थे। बूआ तो आपको धनवती के पास छोड़कर चली आयी थी। इस पर उनको बहुत शोक लग गया। जब आप दो वर्ष के हुए तो धनवती आपको बिना आंखों से जीवन चलाने की शिक्षा देने लगी। उनका विचार है कि तुम्हारे पाच वर्ष की वयस् के होने तक तुमको जब एकबार मार्ग अथवा किसी का शब्द समझा दिया जाता था तो आपके चित्त पर उसका ऐसा चित्र बन जाता था कि तुम उसके अनुसार कार्य करने लगते थे।''
''तब तो बहन, तुम मुझसे अधिक जान गयी हो।"
''पर मैं तुम्हारे संत माधवदास के आश्रम की कथा जानना चाहती हूँ।"
''वहां तो एक रस जीवन चलता था। दो-चार दिन में ही माता धनवती की शिक्षा के कारण, मैं प्रातःकाल जाग जाता, शौच स्नानादि से बिना किसी की सहायता से निपट गुरुजी के चरण कमलों के समीप आ बैठता था। पूर्ण राम चरित मानस उनको कण्ठस्थ था और वह नित्थ प्रात: दो घण्टा भर पाठ किया करते थे।
''तदनन्तर वह मुझे भजन सिखाने लगे थे।
''बस बहन! दस वर्ष तक मेरा यही कार्यक्रम रहा है। कुछ ही वर्षो के उपरान्त मैं सायंकाल कथा के समय पहले भजन और पीछे राम चरित मानस का पाठ भी किया करता था।
''इस समय संतजी का एकाएक देहान्त हो गया और मैं अनाथ हो गया।''
''परन्तु आपने वह............।'' इस समय धनवती वहां आ गयी और बोली, "राम! जल लोगे?"
''हां, मां!''
प्रियवदना की बात समाप्त हो गयी। मृदुला आज फिर अनानास का शरबत ले आयी और राम ने कहा, "यह स्वादिष्ट तो बहुत है, परन्तु मैं विचार करता हूँ कि किसी प्रकार का पेट में विकार न करे।"
''नहीं भैया।" प्रियवदना ने कह दिया,"यह यहां की जलवायु में पेट को ठीक रखता है।''
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
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- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :