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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

''मेरी गाड़ी तो कुछ बिगड़ी है। उसे मैं बरेली फैक्टरी में भेज रहा हूँ।"

''तो बरेली तक ही मुझे दे दीजिये।"

"नहीं कमला! गाड़ी नहीं मिलेगी। इसके साथ मेरी भावना सम्बन्धित है। यह सूरदास के कमरे से भी अधिक प्रबल है।"

''ठीक है! मैं जा रही हूं।"

कमला ने रामेश्वरप्रसाद को बुलाकर प्रकाशचन्द्र के सामने ही आज्ञा दे दी, "किसी प्रकार की अदायगी तथा नयी खरीद मेरे आने तक नहीं होगी। मैं बम्बई जा रही हूँ।"

रामेश्बरप्रसाद ने मुस्कराते हुए प्रकाश बाबू की ओर देखकर पूछ लिया, "इस पर भी आप तो कहीं बाहर नहीं जा रहे?"

''मैं भी बरेली जा रहा हूं।"

"यहाँ कुछ कठिनाई भी हो सकती है।"

''मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता।"

कमला चुपचाप कार्यालय से ऊपर निवास कक्ष में गयी तो मां के पास श्रीमती की मां बैठी थी। उसे सूचना मिला थी कि श्रीमती ने कोई लडका गोद लिया है। वह इस विषय में पूर्ण वृत्तान्त जानने आयी थी। चन्द्रावती ने बताया था, "हमारी एक पुरोहितायिन थी। उसकी लड़की का विवाह बम्बई में हो गया था। यह लड़का उसका है। नाम है विश्वम्भर प्रसाद।"

''वह लड़की कहां है?"

''लड़की तो यहीं रहती है। उसका पति से झगड़ा हो गया है और उसने इसे घर से निकाल दिया है।''

लड़के की मां और श्रीमती को बुलाया गया। विश्वम्भर श्रीमती के साथ था। उसे देख श्रीमती की मां ने पसन्द किया। उसने देखा कि श्रीमती भी जीवन मे रुचि लेने लगी है। उसने कह दिया, "अब इस लड़के के दीर्घ जीवन के लिए भगवान् से प्रार्थना करो।"

''मां! वह तो कर रही हूँ। मैं समझती हूं कि मेरे लिए भी कुछ काम बन गया है।"

जब श्रीमती जानै लगी तो कमला वहां आ गयी। उसने कहा, "माँ! पिताजी का टेलीफोन आया है कि तुरन्त बम्बई पहुँच जाओ।"

"फिर?"

"मैं जा रही हूँ। मैंने बिन्दु को कह दिया है कि मेरा सूटकेस तैयार कर दे।"

''कैसे जाओगी?''

"दो बजे की गाड़ी से बरेली जाऊंगी। वहां से जो भी ट्रेन मिलेगी, उससे दिल्ली और वहाँ से हवाई जहाज से बम्बई।"

"प्रकाश से गाड़ी क्यों नहीं मांग लेतीं?''

''मांगी थी। वह कहता है कि गाड़ी बिगड़ी हुई है।"

"तो ऐसा करो।" श्रीमती की मां ने कह दिया, "तुम हमारी गाड़ी ले जाओ। मैं ड्राईवर को बता देती द्रूं। दिल्ली से गाड़ी वापिस भेज देना। यदि अभी चल दो तो रात के हवाई जहाज का टिकट भी मिल सकता है।"

''मौसी! बहुत कष्ट होगा आपको।"

''कुछ कष्ट नहीं होगा। अभी साढ़े दस बजे हैं। मैं बारह बजे की गाड़ी से कासगंज चली जाऊंगी।"

इस प्रकार कमला दस मिनट में तैयार हो मोटर में बैठ चली गई।

प्रकाशचन्द्र मध्याह्न का भोजन करने आया तो उसे पता चला कि श्रीमती की माँ आयी हुई थी और लड़के को देख उसे आशीर्वाद दे गयी है।

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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