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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

प्रात: स्नानादि से निवुत्त हो वह पिता के कमरे मै जा पिता को बम्बई में टेलीफ़ोन-करने लगा। आधे घन्टे में अर्जेण्ट काल सम्पन्न हुई और प्रकाशचन्द्र ने कुशल समाचार पूछने के उपरान्त उनके पत्र की बात पूछने लगा। सेठजी ने बताया "चार-पांच दिन हुए, मैं मोटर मे मैरीन ड्राइव की ओर जा रहा था कि सूरदास एक स्त्री का हाथ पकड़े हुए जाता दिखाई दिया। पहले तो मैंने सामान्य दृष्टि से देखा। मुझे राम के होने पर सन्देह हुआ। इतना विचारते-विचारते

मोटर आधा फ़र्लाग आगे निकल गयी थी। मैंने मोटर खड़ी की और लौटायी। अब मैं सड़क के दूसरी ओर था और राम उस स्त्री के साथ समुद्र तट की ओर बनी मुंडेर के साथ-साथ चल रहा था। मैं पुन: घूमकर उधर आया और गाडी खड़ी कर उस स्त्री और सूरदास का मार्ग रोक खड़ा हो गया। वह स्त्री मुझे जानती नहीं थी। अत: माथे पर त्यौरी चढ़ा मेरी ओर देखने लगी, परन्तु जब मैंने राम को आवाज़ दी तो वह पहचान गया और हाथ जोड़ कहने लगा, तो भगौडे को पकड पाये है?"

"मेरी हंसी निकल गयी। बस, शेष तुम समझ लो। मैं उसे बदायूं लाना चाहता हूँ। वह और उसकी अभिभाविका स्त्री अभी मानी नही। कमला की प्रेरणा भी उसे राजी नहीं कर सकी।"

"तो उसे वहीं रहने दीजिये। हम बम्बई तो आते-जातै ही हैं। उससे पुन: सम्पर्क बना लेंगे।''

"मैं कुछ ऐसा ही विचार कर रहा हूं, परन्तु कमला कुछ और समझ रही है। इस पर भी हम कल तक लौटने का कार्यक्रम बना रहे हैं।"

"ठीक है। यहां आ जाइये। विचार कर लेगे।"

यह सूचना प्रकाशचन्द्र के मन में द्वन्द्व उत्पन्न करने वाली सिद्ध हुई थी। वह विचार कर रहा था कि राम को बदायूं लाना चाहिये अथवा नहीं? लाया गया तो क्या होगा? वह घटनाओं की एक श्रृंखला कल्पना करने लगा था जिसका परिणाम उसके बदायूं छोड़ने तक हो सकता था। इसका विकल्प भी वह विचार करता था कि राम को बम्बई ही रहने दिया जाये; इस पर भी घटनाओं की दूसरी श्रृंखला बन रही थी, जिसमें परिवार बदायूं से बम्बई जाता प्रतीत होता था और इस अवस्था में भी बह परिवार छोड़ता प्रतीत होता था। वह कुछ काल तक तो बदायूं छोड़ नहीं सकता था। उसके निर्वाचन को अवैध घोषित करने के लिए याचिका अदालत में थी और फिर श्रीमती जो अब सजीव हो रही प्रतीत होती थी, उसके बदायूं छोडने का विरोध करती प्रतीत हो रही थी।

इस प्रकार की उधेड़-बुन में वह अपने कमरे में चला आया।

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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