उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
धनवती दोनों को बैठा बाहर चली गयी। सेठजी ने सूरदास से पूछ लिया,"राम यहां कैसे पहुँच गये?"
''यह स्त्री जो मेरे साथ थी, मेरे जन्म से लेकर पांच वर्ष की आयु तक मेरा पालन करने वाली है। इसने मुझे हरिद्वार में गंगा घाट पर सुन्दरदास की प्रतीक्षा करते देख लिया और पहचान लिया। तदनन्तर परिचय हुआ तो मुझे इसकी याद आ गयी। मैं सुन्दरवास से लापता होना चाहता था, अत: अवसर मिलते ही इसके साथ हो लिया।
"सुन्दरदास से लापता होना चाहते थे अथवा हमसे?"
"वास्तव में प्रकाश बाबू से तथा कमला से। सुन्दरदास ही मुझें उनसे जौडूने वाली कड़ी थी; इसलिए उसका नाम ही ले रहा हूं।"
"और यह कौन है जो इस समय पूजा में है?"
''यह हैं जिन्होंने मुझे जन्म दिया और फिर माता धनवती के पास पालने के लिए छोड़ दिया कहा जाता है।"
"और तुमको इस सब कहानी पर विश्वास हो गया है?''
''अविश्वास करने में कोई कारण भी तो न हीं है। पिताजी, एक अन्धे और सदा अपने प्रत्येक कार्य में दूसरों का आश्रय ढूंढने वाले पर कोई क्यों इतनी कृपा करेगा? यह समझ में नहीं आता। साथ ही......।
इस समय मृदुला ट्रे में चाय और मिठाई ले आयी।
उस समय सायं सात बज रहे थे। सेठजी ने एक तीसरी स्त्रा को देख विस्मित हो पूछ लिया, "किसके लिए लायी हो?''
''आपके लिये।"
"मैं कौन हूँ?'' कौडडियामल्ल ने मुस्कराते हुए पूछ लिया।
"यह बहनजी आकर पूछ लेंगी। उनके आने में अभी दस-पन्द्रह मिनट हैं।"
"सेठजी ने मूरदास से श्छ लिया, "क्यों राम। चाय पियोगे?"
"पिताजी। मैं तो पीकर ही यहां से भ्रमण के लिए गया था। मेरे भ्रमण के लिये जाने का समय पांच बजे है। मैं समझता हूं कि अभी सात नहीं बजे।
''हां, यही समय है।" सेठजी ने कलाई पर बंधी घड़ी को देख कह दिया, "इस पर भी तुम्हारे माताजी की प्रतीक्षा जो करनी है। एक प्याला तुम्हारे लिए भी बनाता हूं।"
सेठजी ने अपने और सूरदास के लिये चाय बनायी और सूरदास के हाथ में पकड़ाते हुए पूछा, "कितनी स्त्रियां यहां रहती हैं?"
सूरदास ने कहा, "मेरी जानकारी में तो छ: आयी हैं। अभी और भी हों तो कह नहीं सकता।"
''और पुरुष?"
"अभी तक एक से ही सम्पर्क बना है। वह माताजी के बड़े भाई हैं। बड़ौदा में काम करते हैं। पिछले तीन महीने में जबसे मैं यहां आया हूं, वह एक बार आए थे और मुझे ज्ञात हुआ है कि मेरे यहां रहने को अस्वीकार कर गये हैं।"
''तो फिर अब तुम्हारी क्या स्थिति है?''
''मैं अपनी स्थिति का ज्ञान अपने अनुभवों से ही लगा सकता है। उन अनुभवों की परीक्षा प्रत्यक्ष रूप में नहीं कर सकता। इस अधूरे ज्ञान से मैं यह समझा हूँ कि मातानी के बड़े भाई के मेरे यहां रहने पर आपत्ति करने के उपरान्त मुझे इस घर में अधिक स्नेह का अनुभव होने लगा है।''
"तो तुम यहां प्रसन्न हो?'' चाय पीते-पीते रुककर सेठजी ने पूछ लिया।
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :