उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
"राम! मैं तो अब प्रकाश को विजयी हों संसद भवन में देश के प्रमुरव व्यक्तियों मे बैठा देखने की लालसा कर रहा हूं। इसके लिये पूर्ण जीवन की कमाई भी स्वाहा करने को तैयार हूं।"
''इतने की आवश्यकता नही पड़ेगी। इससे अधिक आपकी धर्म कीर्ति सहायक होगी।
"उसमें तुम सहायक होगे।"
सब लोग सूरदास के कमरे में आ गये। कमला, उसकी माता और अध्यापिका भी साथ थीं। परिवार के लोग कमरे में आ गये और सूरदास बैठा तो सुन्दरदास उसके लिये दूध ले आया। सूरदास के सामने चौकी लगा दी गयी और वह दूध पीने लगा।
प्रकाशचन्द्र के मन मैं कमला के सूरदास को तिलक देने की बात खटक रही थी। उसने पिताजी को सम्बोधन कर कहा, "पिताजी! कमला अब राम को तिलक लगाने लगी है।"
कौड़ियामल्ल ने विस्मय प्रकट करते हुए कहा, "सत्य? क्यों, कमला! सूरदास को तिलक लगाने लगी हो?"
कमला मौन रही। वह इस बात को चर्चा का विषय बनाना नहीं चाहती थी। इस पर सेठजी ने पुन: कहा, "मैंने इस काम के लिये सुन्दरदास को नियुक्त जो किया हुआ है।"
"पर पिता जी!" प्रकाशचन्द्र ने सुन्दरदास को बात से बाहर रखने के लिये कह दिया, "सुन्दरदास कमला को मना कैसे कर सकता है?"
कौड़ियामल्ल को इसमें कुछ बात समझ आयी और उसने बात को सूरदास के सामने आगे न चलाने के लियें कह दिया, "अच्छी बात है। कमला की मां उसे मना कर देगी। लड़कियां तो जीवन मे केवल एक को ही तिलक लगाती हैं।''
कमला चुपचाप सूरदास की ओर देख रही थी। कमला की मां चन्द्रावती ने बात बदल दी। उसने कहा, "प्रकाश तो निर्वाचनों में लग जायेगा तो अब काम-काज कौन देखेगा? काम बम्बई, कलकत्ता, कानपुर और पटना इत्यादि में फैला हुआ है। इसकी देख-रेख नहीं हो सकेगी।"
चन्द्रावती का विचार था कि घर का कोई अन्य प्राणी होना चाहिये जो कारोबार की देख-रेख कर सके। अत: उसने कह दिया, ''मैं तो इसलिये भी कमला के विवाह की प्रतीक्षा कर रही हूं', परन्तु आप इतने घूमने-फिरने बाले आदमी हैं फिर भी आपको कोई ठीक लड़का नही मिलता।''
सेठजी ने बातों का सूत्र अपने हाथ में लेते हुए कहा, "इस विषय में मेरा और प्रकाश का मतभेद रहा है। प्रकाश का विचार है कि किसी धनी का बेटा होना चाहिये जिसे लाखों में रहने का अभ्यास हो। मेरा विचार है कि किसी गरीब के लड़के से विवाह होना चाहिये। वह ही हमारे कारोबार में सहायक हो सकेगा।''
इस पर कमला की अध्यापिका ने कह दिया, "पिताजी! अब तो लड़कियां पिता की सम्पत्ति में भाईयों के बराबर की उत्तरा-धिकारिणी हो गयी हैं। तब क्यों न उनको भी कारोबार में सम्मिलित होने का अवसर दिया जाये?"
"क्या मतलब?" प्रकाशचन्द्र ने शीलवती से पूछ लिया।
"बात तो सरल है। जब लड़की पिता की सम्पत्ति की उत्तरा-धिकारिणी बन गयी है तो वह पिता के कारोबार की भी उत्तरा-धिकारिणी क्यों न हो?"
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :