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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

"मैं इसमें क्या कर सकूंगा?”

"मैं अपने पूर्ण निर्वाचन क्षत्र में निर्वाचन से पहले आठ सौ सभायें करना चाहता हूं। जलूस निकालना चाहता हूं। उन सभाओं और जलूसों में राम भैया की राम कथा, राम कीर्तन और संगीत हुआ करेगा। मैं समझता हूं कि दिन में सात-आठ सभायें हुआ करेंगी और तुमको यह तपस्या करनी होगी।"

"राम कथा से मैं थकता नहीं हूँ। कीर्तन भी मैं आठ-दस घण्टे निरन्तर कर सकता हूँ। दादा, तुम चिन्ता मत करो। मैं यह सब कुछ कर दूंगा। कितना धन व्यय करना चाहते हो?"

"यहां के लोग तो कहते हैं कि बीस लाख रुपया व्यय हो जायेगा।"

"बीस लाख?"

"हां भैया। मुंशी तो कह रहा था कि आज देश में, विशेष रूप से देहातों में, खुशहाली व्यापक होती जाती है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष में भी अपार वृद्धि हो रही है। इस कारण मुझ जैसे प्रत्याशी के लिये लोगों के इन दुर्गुणों का मोल-तोल करना पड़ेगा। मुझे इतना तो लोक सभा की कुर्सी के लिये व्यय करना ही पड़ेगा।”

अगले दिन प्रकाशचन्द्र को नींद से जगाने के लिये सूरदास अपने बिस्तर पर उठकर बैठ गया और तानपुरा ले तारों को स्वर कर स-प की ध्वनि करने लगा।

जब स्वर ठीक हो गया तो वह मन्द-मन्द आवाज में स्वर भरने लगा। कुछ देर स्वर करने पर प्रकाशचन्द्र की नींद खुली और वह बिस्तर में हिलने लगा।

सूरदास गाने लगा...

अन्धेरे को... अन्धरे को... अन्धकार में... प्रभु आवो, अब तो राह दिखावो।

इस प्रकार सूरदास अपनी और वास्तव में मनुष्य मात्र के अभाव की पूर्ति के लिए याचना करने लगा।

अब प्रकाशचन्द्र ने आंखें खोल कह दिया, “भैया राम। कुछ हम

आंखों वालों के लिये भी मांग लो न।"

सूरदास गाता गया....

"जग अंधा कुछ नहीं पहचाने,
प्रभु आवो अब तो राह दिखावो।
अन्धेरे को अन्धकार में प्रभु,
आवो अब तो राह दिखावो।
समझत अभी हैं अन्धियारा,
जात नहीं हो गया उजियारा।
अन्धेरे को...

प्रकाशचन्द्र उठ पलंग से नीचे आ गया श्रौर् बोला, "सत्यं है भैया। उजाला हो गया है।”

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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