उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
"पर राम। यह तुम उस राम के विषय में कह रहे हो जो घट-घट में व्यापक है अथवा उस राम के विषय में कह रहे हो जो दशरथ का बेटा और सीता का पति था।"
"दोनों के विषय में मेरे मन में दोनों में अन्तर नहीं।
मुनि धीर जोगी सिद्ध संतत विमल मन जेहि ध्यावही।
कहि नेति निगम पुरान आगम जासु कीरति गावहीं।।
सोई राम व्यापक ब्रह्म भवन निकाम पति माया धनी।
अवतरेउ अपने भगत हित निजतंत्र नित रखुकुल मनि।।
"सो भैया! रघुकुल के दीपक दशरथ पुत्र राम और वे राम जो घट-घट में व्यापक हैं, एक ही हैं। उन्हीं का अवतार हुआ था इस लोकतारन को।"
''यही तो पण्डितजी कह गये हैं कि इस राम से हमारे सैक्युलर राज्य की निन्दा होती है।"
"तो भैया। मुझे मत ले जाया करो। मैं तो एक ही बात जानता हूं।
बिन सत सग विवेक न होई राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।
सत सगत मुद मंगल मूला सोई फल सिधि सब साधन फूला।।
"बिना भले लोगों की सगत के बुद्धि का विकास नहीं होता और राम कथा सत संग में साधन है। सत संग ही मंगल और मोद का मूल है। सत्संग से सिद्धि रूपी फल मिलता है और साधन अर्थात् राम कथा फूल है जहां से फल की उत्पत्ति होती है।"
"पर राम। इस समय सफलता में साधन पण्डित नेहरू हैं और वह राम नाम को पसन्द नहीं करते।"
"यही तो मैं कह रहा हूँ। पिताजी। "सूरदास ने सेठजी को सम्बोधन कर कहा, "आज से हवेली के पिछवाड़े मे कथा का प्रबन्ध कर दीजिये।"
''पर वहां निर्वाचन की चर्चा नहीं होगी।" प्रकाशचन्द्र ने कह दिया।
''नही होगी।" नयनाभिराम ने कहा, "भैया! यदि तुम्हारा हित होता हो तो तुम्हारे निर्वाचित किये जाने का विरोध भी कर सकता हूँ?"
"यदि हमारे घर का अन्न खाकर यही समझ आया है तो यह भी कर दो।"
''नही। मैं तो ऐसा नहीं समझता, परन्तु तुम बनने जा रहे हो पण्डित के शिष्य; इस कारण तुम्हारे हित में जो हो, वह कर सकता हूँ। अन्यथा......।"
बात बीच में ही काटकर सेठजी ने कह दिया,"प्रकाश यह विवाद व्यर्थ है। तुम बताओ कि क्या चाहते हो?"
''मैं तो यह विचार कर रहा हूं कि राम भैया की मण्डली स्वतन्त्र रूप से जाया करे। मुंशी कर्तानारायण इनके प्रचार का कार्यक्रम बना दिया करेंगे। सुन्दर इनके साथ जायेगा ही। एक मोटर गाड़ी इनको मिल जायेगी।
''ये जायें ओर राम की महिमा का गान किया करें, परन्तु उसके साथ मेरे निर्वाचन की कोई बात न हो।"
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :