उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
''तो दोनों परस्पर मिले भी है?"
"इसके लक्षण दिखायी नही देते। शीलवती का कहना है कि नहीं। वैसे मैं इस बात की सम्भावना से बचने के लिए रात कमला के सोने के कमरे को बाहर से ताला लगा दिया करती हूं।"
सेठजी ने मुस्कराकर कहा, "तभी वह अपने लिए हवेली में बाहर मकान बनवाना चाहती है, जिससे वह तुम्हारी कैद से छूट सके।"
''हो सकता है, परन्तु उसने अपने कमरे को बाहर सें ताला लगाये जाने के विषय में कभी शिकायत नहीं की।"
''देखो चन्द्र! घर के प्रबन्ध में तुम पूर्ण अधिकार रखती हो। घर से बाहर मेरा कार्य क्षेत्र है और मुझे कमला को कार्यालय का कार्य सौंपने से सुख प्राप्त हुआ है। मैं निश्चिन्त हो बाहर आ-जा सकता हूँ और वह अब कार्यालय का कार्य सुचारू रूप से करने लगी है। ऐसी सुविधा तो मुझे प्रकाश के समय में भी नहीं मिली थी।"
"उसके विवाह के विषय में आप क्या कहते हैं। मुझे भागीरथ की एक बात ने विचार करने पर विवश किया है। वह यह कि कमला का रंग आवश्यकता से अधिक मैला है। उसकी रूप रेखा भद्दी है, अत: कोई भी व्यक्ति उससे जीवन भर सन्तुष्ट नहीं रह सकता। यदि आप धन का प्रलोभन देंगे तो वह उसे सहन कर सकेगा। साथ ही उसनें यह भी कहा था कि उसके माता-पिता निर्धन हैं; इस कारण उसके घर में कमला का खप जाना अधिक सुगम होगा और किसी धनी के घर में उसकी क़ुछ अधिक काल तक सुख मे रह सकना सम्भव नहीं हो सकेगा।"
''इस पर मैंने विचार किया है कि यदि सूरदास की पत्नी बने तो वह न तो उसका रंग देख सकेगा, न ही उसकी रूप-रेखा। वह तो उसका मूल्य उसके मीठा बोलने से ही लगा रहा है। रही बात देसके किसी प्रकार के कारोबार में लगने की? मैं यह समझती हूं कि कमला उसके लिये भी पैदा कर लेगी।"
"अच्छा मकान बनने दो, तब तक विचार कर लेंगे।"
निर्वाचनों के उपरान्त प्रकाशचन्द्र ने दिल्ली जाने की तैयारी कर दी। वहां संसद बैठ रही थी। अब प्रकाशचन्द्र के साथी थे मुंशी कर्तानारायण, सूर्यकान्त, स्थार्नोय कांग्रेस कमेटी का मन्त्री, महावीर मोटर ड्राईवर और मिस्टर रमेशचन्द्र सिन्हा।
प्रकाशचन्द्र के निर्वाचनों का हिसाब इलैक्शन अधिकारियों के सम्मुख उपस्थित किया गया। यह सात हज़ार तीन सौ नब्बे रुपये का
था। शेष तो बिना बहीखाते पर दर्ज किये ही व्यय हुआ था। उसका कोई रसीद-पर्चा भी नहीं था। इस पर भी निर्वाचन रद्द करने के लिए पटीशन की तैयारी होने लगी। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का प्रत्याशी जिसको प्रकाशचन्द्र से दस सहस्त्र मत कम मिले थे, यह दावा करने वाला था कि प्रकाशचन्द्र ने निर्वाचन साम्प्रदायिकता और मज़हबी प्रचार के आधार पर जीता है। इस कारण इसका निर्वावन रद्द कर दिया जाये।
प्रकाशचन्द्र को यह समाचार मिला तो वह पिताजी और सूरदास को यह बताने के लिये सायंकाल की कथा के उपरान्त सूरदास के कमरे में आ पहुंचा। अब वह सूरदास की कथा सुनने नहीं जाया करता था।
जब कथा से सब लोग आ गये तो प्रकाशचन्द्र भी वहां आ पहुँचा। सबके बैठते ही उसने कहा, "पिताजी। आपके कथा-कीर्तन का एक अन्य प्रभाव होने वाला है।"
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :