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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

प्रकाशचन्द्र भी अपने मन में विचार करता था कि वह सूरदास के विरूद्ध क्यों हो रहा है? आखिर उसे अपने रोष का कारण समझ आ गया। उसने कहा, "मान लूं कि इस मुकद्दमे में उसका दोष नहीं, परन्तु वह यदि घर में न होता तो मैं उसे निर्वाचनों में प्रयोग करने के प्रलोभन में मैं न फंसता।"

"और तुमको इतने कम मत मिलते कि तुम्हारी ज़मानत जप्त हो जाती।''

"परन्तु पिताजी! वह किसी और के लिये भी तो प्रलोभन बना हुआ है। मुझे भय है कि उसकी ज़मानत जप्त न हो जाये।"

इस पर सेठानीजी ने पूछ लिया, "किसकी बात कर रहे हो प्रकाश?"

''तो मां! तुम जानती नहीं कि इस सूरदास के कारण और किस की ज़मानत जप्त हो रही है? मेरा अभिप्राय कमला से है।"

''किसने दे रखी है मेरी ज़मानत?'' कमला ने पूछ लिया।

''पिताजी ने। माताजी ने और फिर मैंने।"

''किस बात की ज़मानत दे रखी है आपने?'' कमला का अगला प्रश्न था।

"यही कि तुम एक करोड़पति के घर में उत्पन्न हुई हो; इस कारण वह करोड़पति इस बात का उत्तरदायी है कि तुम्हारा घर, वर ऐसा देखा जाये जो अपनी स्थिति के बराबर का हो।"

''और यदि अपने जैसा न मिला तो कितने की ज़मानत जप्त हो जायेगी?"

''जितना एक करोड़पति की मान-प्रतिष्ठा का मूल्य हो सकता है।''

"वह तो जप्त हो चुकी है। अभी सर्वत्र प्रत्यक्ष नहीं और जिनके सामने प्रत्यक्ष है, वे इसे जप्त नहीं समझते। वे इसे प्रतिष्ठा में वृद्धि मान रहे हैं।"

प्रकाश ने समझा कि कमला कह रही है कि वह सूरदास को वर चुकी है। वह उसकी पत्नी बन चुकी है। यद्यपि सब इसे नहीं जानते। वह और कदाचित् उसकी अध्यापिका इसे जानते हैं और वे इसे प्रतिष्ठा मैं वृद्धि करने वाला कार्य समझते हैं।

इस विचार पर उसका हाथ, मुख को ग्रास ले जाता हुआ रुक गया और वह भयभीत बहन का मुख देखने लगा। सेठ और सेठानी भी सशित मन कमला के मुख पर देखने लगे। वह मुस्करा रही थी। कुछ देर तक अपने भाई की अवस्था देख उसने कह दिया, "तो समझ गये हो भैया, कि एक करोड़पति और राम भक्त की मान-प्रतिष्ठा चरस के धुएं में उड़ गयी है तथा मांग के खूटी-डण्डे में घोटी गयी है। कुछ को तो यह भी दिखायी दिया है कि मद्य के जामों में घोल पी डाली गयी है।''

"पर वह तो राजनीति थी।" प्रकाश को शान्ति मिली। सेठ जी हुस पड़े। वह मन से सुस्थिर हो पुन: भोजन करने लगे। सेठानी को कमला का कथन मला प्रतीत हुआ था। वह यह समझ गयी थी कि उसकी लड़की लडके से अधिक बुद्धि और वाक्-पटुता रखती है।

राजनीति का उत्तर कमला ने ही दिया। उसने कहा, "भैया। राजनीति एक गन्दी नाली है, यह मैं जानती हूं। पर आपको यह बता दूं कि यह पवित्र प्रेम-रीति-है। देखो भैया, मैं उनको मन से वर चुकी हूं। रही विवाह की बात, वह माती-पिता के अधीन है। विवाह शारीरिक सम्बन्ध का सूचक है। मेरे शरीर के निर्माता मेरे माता-पिता हैं। उन्होंने ही इसको जन्म दिया है। वह ही इसकी व्यवस्था करेंगे।"

"तब तो ठीक है। मैंने एक स्थान पर तुम्हारी व्यवस्था करने का विचार किया है।"

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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