उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
''पण्डे ने कहा, 'हां। वह रेशमी कुर्त्ता, ऊपर रूद्राक्ष की माला, छोटी-छोटी दाढ़ी और सिर पर घुंघराले बाल रखे हुए था। यह देरवो, गीली धोती और तौलिया, साबुन यही छोड़ गया है।"
''कुछ कह गये हैं?''
'बस यही कि एक सुन्दरदास नाम का आदमी पूरी लेकर आयेगा तो उसे ये दे देना और कहना कि घर लौट जाये।'
"वह अकेला ही चला गया है? उसे तो कुछ दिखायी नहीं देता था।''
'सत्य? पर उसकी आंखें तो ठीक प्रतीत होती थीं। हां, वह एक स्त्री का हाथ पकड़े हुए था। वह प्रौढ़ावस्था की स्त्री थी।'
''मैं दो दिन तक हरिद्वार की सब धर्मशालाओं, क्षेत्रों, होटलों में उसे ढूंढता रहा। मैं उसे गंगा घाट पर तथा स्टेशन पर भी मेवता रहा था।
''इन्हीं दिनों मेरी जेब कतरी गयी और मैं अकिंचन हो भीख मांगता हुआ घर को लौट पडा।"
कमला आंखें मूंदे यह कथा सुन रही थी और उसकी मुंदी आंखों से आंसू बहते हुए उसके गालों पर से होते हुए उसके आचल में गिर रहे थे।
जब सुन्दरदास अपनी कथा समाप्त कर चुका तो उस कथन के विषय में बहन कमला की सम्मति सुनना चाहता था परन्तु वहू सामने खड़ा उसे आसू बहाते देखता रहा। कितनी ही देर तक वह मूर्तिवत् खड़ा रहा और कमला चुपचाप रोती रही। एकाएक वह उठी और सुन्दरदास को कुछ भी कहे बिना बैठक घर से निकल ऊपर अपने कमरे को चली गयी।
उसके कमरे में शीलवती उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। कमला ने उसे नहीं देखा और अपने पलंग पर लेट मुख तकिये में दे विह्वल हो रोने लगी।
शीलवती उसके पलंग पर बैठ उसकी पीठ पर हाथ फेर पूछने लगी, "कहां गयी थी, कमला? क्या हुआ है?"
इस पर कमला और भी फूट-फूट कर रोने लगी। शीलवती उसके साथ ही लेट गयी और उसको प्यार देती हुई, गले लगाती हुई उसका मुख चूमते हुए उसे चुप कराने का यत्न करने लगी।
आखिर इस वात्सल्यता का प्रभाव हुआ और वह धीरे-धीरे शांत चित्त हुई तो दोनों उठकर बैठ गयीं। शीलवती ने कहा, "कमला! दिन के समय पलंग पर सोना पाप हो जाता है। चलो, गुसलखाने में मुख धोकर रामायरग का पाठ करें इससे चित्त को शांति मिलेगी।"
वह गुसलखाने में गयी तो शीलवती ने अलमारी से रामायण निकाली और राम के सीता की खोज में व्याकुल घूमने का प्रसंग निकाल लिया और धीरे-धीरे गाती हुई पढ़ने लगी।
आश्रम देख जामकी हीना, भय विकल जस प्राकृत दीना।।
हा! गुनखानी जानकी सीता रूप सील व्रत नेम पुनीता।।
लछिमन समुझाये बहु भांति पूछत चले लता तरु पीती।।
अध्यापिका की संगीत भरी आवाज़ सुन कमला गुसलखाने से निकल आयी और चुपचाप शीलवती से कमरे में बैठ सुनने लगी।
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :