उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
''इस पर सेठानीजी ने कहा, 'देखो श्रीमती.! यदि वह प्रकाश के पास गयी तो प्रकाश इस घर मैं नहीं आ सकेगा। उसे अपने लिये कहीं अन्य ठिकाना सम्भवतः इस नगर से बाहर बनाना होगा। इसी कारण तुम्हारी इच्छा जानना चाहती हूँ।'
भाभी ने कहा, "आप जब मुभहे यहां से जाने के लिये कहेंगी, चली जाऊंगी।''
''यदि प्रकाश कहेगा तो?"
"जब वहू कहेंगे तो विचार कर लूंगी, परन्तु मांजी, आपके घर पोता आ जायेगा। यह ठीक नहीं होगा क्या?'
"पोते की लालसा के विषय में सेठजी विचार कर लेंगे।"
''इस पर वह बोली, 'मैं अब थक गयी हूँ और विश्राम करना चाहती हूँ।"
अत: हम चली आयी हैं। तुम्हारी माताजी तुम्हारे तार की प्रतिक्रिया देखना चाहती हैं। यदि तो सेठजी आ गये तो वह ही विचार करेंगे, परन्तु यदि वह न आये तो वह स्वयं सब कुछ छोड़ हरिद्वार जाकर भगवद्भजन में लग जाना चाहती हैं।''
''यह बात समझ में नहीं आयी।" कमला ने विस्मय में पूछ लिया।
"समझ में तो मुझे भी नही आयी, परन्तु सेठजी ने भी लिखा है कि अब उनका मन व्यापार से ऊब रहा है। यदि वह अब भी काम समेटना आरम्भ करें तो तीन-चार वर्ष लग जायेंगे।"
कमला इसका अर्थ समझने में लगी रही। एकाएक शीलवती उठी और बोली, ''मैं तनिक अपने घर जा रही हूं। मास्टरजी आज स्कूल से जल्दी आने वाले मुंह। उनके स्कूल में किसी विशेष कारण से आज छुट्टी होने वाली है।''
कमला चुप रही और शीलवती चली गयी। वह स्वयं उठी और कार्यालय को चली गयी। पहले ही आधा घण्टा की देरी हो गयी थी। जब वह वहां पहुँची तो उसने देखा कि कार्यालय का मुख्य मैनेजर उत्हुकता से उसकी प्रतीक्षा कर रहा है।
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :