लोगों की राय

उपन्यास >> अंधकार

अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

''मैंने वह सब कुछ वर्णन कर दिया जिस प्रकार कृष्णदास मेरे बिस्तर में घुस आया था और फिर जो कुछ वह करने जा रहा था तथा उसके मिठाई खिलाने की बात भी बता दी।

''गुरुजी कुछ काल तक मौन रहें और फिर मुझे अपने समीप बैठा, शब्दों में ही स्त्री-पुरुष के व्यवहार की बात समझाने लगे। नहोंने पग पग कर मुझे स्त्री के शरीर में प्राणी के बनने की बात भी समझा दी। उस समय मैं वासना का अर्थ न समझता था और न अनुभव रखता था, परन्तु उनकी वर्णन करने की विधि इतनी सरल

और स्पष्ट थी कि मुझे बौद्धिक ज्ञान हो गया। उसी समय उन्होंने मुझे मेरी आखों के अभाव के कारण संसार मैं हीन स्थिति का ज्ञान भी करा दिया।

''उन्होंने मुझे बताया था कि वीर्य रक्षा की क्या महिमा है और साथ ही यह भी बता दिया कि वीर्य रक्षा से क्या होता है? जब मैं यह समझ गया तो उन्होंने मुझे आसन और प्राणायाम का अभ्यास कराना आरम्भ कर दिया। उसी रात मुझे प्राणायाम में प्रथम अभ्यास उन्होंने कराया।

''दो घण्टे लगे इस पूर्ण वार्तालाप और अम्यास में। तब उन्होंने मुझे कहा कि अब दिन निकलने वारना है। जाओ, गंगा स्नान करोऔर गंगा में कमर तक जल में खड़े हो गायत्री मन्त्र का जप करो। एक सहस्र जप नित्य किया करो।

''माँ! तबसे मैं अपने को बहुत ही सुदृढ़ भित्ति पर खड़ा अनुभव करता था, परंतु मुझे इस वासना का प्रथम आभास भी किसी ने कराया था। मैं बदायूं में सेठ कौड़ियामल्ल की हवेली में रहता था। वहां सेठजी की लड़की एक रात वासनाभिभूत मेरे अंग-संग आ लगी। प्रथम तो मैंने विरोध किया, परंतु मानव दुर्बलता ने आ घेरा और कौमार्य भग होने ही वाला था कि वह उठी, मेरा बिस्तर छोड़ चल दी। पीछे एक दिन उसने मुझे बताया था कि वह भूल करने जा रही थी। समय पर उसकी अन्तरात्मा ने उसे झकझोर सचेत कर दिया था।"

"और पीछे?" धनवती ने पूछ लिया, "तुम वहां से भाग आये?"

"नहीं; उसके कई महीने पीछे तक मैं वहां रहा हूँ। मेरा उससे समझौता हो गया था। वह मेरे कमरे में हाकेली नहीं आती थी। कमी आती भी थी तो केवल चरण स्पर्श करने। यह निश्चय था कि आत्मा का आत्मा से संयोग तो है ही। मानसिक सहचारिता भी है, परन्तु शरीर तो माता-पिता की देन है। अत: यह उनकी आशा के बिना किसी को दिया नहीं जा सकता। मेरा अभिप्राय था कि विवाह माता- पिता की आज्ञा के बिना नहीं हो सकता।

"इस प्रकार हमारा समझौता चल रहा था। ऐसा प्रतीत होता था कि वह धीरे-धीरे पहले अपनी माता और पीछे पिताजी को मुझसे विवाह के लिये राजी कर चुकी थी। परंतु उस समय सेठजी का लडका मुझसे नाराज़ हो गया। वह लोक सभा का सदस्य निर्वाचित हुआ था। उसके निर्वाचन प्रचार में, मेरी राम कथा और कीर्तन का भी सहयोग रहा था और उसके निर्वाचन को रद्द कराने के लिये मेरे राम के सहयोग को अवाच्छनीय माना जा रहा था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai