उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
वे चाय पी रहे थे। चाय पीते हुए चतुर्भुज ने पुन: कहा, "अब देखने की बात यह है कि कौन किसको मूर्ख बनाता है?
''देखिये प्रकाशजी! मैं तो आपको बहुत बुद्धिमान मानता हूं जो आप राजनीति से सर्वथा असम्बद्ध बात का आश्रय लेकर राजनीतिक लाभ उठा सके हैं। ये लोग भी यही कर रहे हैं। आर्थिक विषयों का आश्रय लेकर राजा बन रहे हैं। भला अर्थ का क्या सम्बन्ध है राज्य के साथ? मै इनकी बातें सुन-सुन कर यह समझा हूं कि जैसे मैं जनता को मूर्ख बना स्वसुख निर्माण कर रहा हूँ वैसे ही आपने किया है। इस कारण यदि आपको ये मूर्ख कहते हैं तो या तो ये स्वयं महामूर्ख हैं अथवा महा धूर्त्त हैं।
''दोनों अवस्थाओं में यह हमारा कर्तव्य है कि इनकी मूर्खता अथवा धूर्तता से लाभ उठायें। बताइये, आप कुछ करना चाहें तो मैं इस दिशा में यत्न आरम्भ करूं?''
''आप करिये। मैं इस काम में धन लगाने के। लिये पिताजी न्हो तैयार कर लूंगा।"
चाय समाप्त हुई तो चतुर्भुज की पत्नी भी आ गयी और अब चारों प्रकाश, चतुर्भुज, उसकी लड़की सुनीता और पत्नी ताश खेलने लगे।
प्रकाश की यह सायं बहुत मजे की गुजरी, परन्तु अपने क्वार्टर में पहुंच उसके मन में प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई। एक ऐसे व्यक्ति के लिए जो मिनिस्टरों से परिचय के बिना छोटी-मोटी रिश्वत की राशियाँ देकर लाखों के ठेके प्राप्त करता रहा हो, उसके लिए मिनिस्टर को पांच लाख और उसके एजेण्ट को एक लाख की रिश्वत देकर ऐसा कार्य पाना जिसमें छोटा-मोटा लाभ हो, शान्ति उत्पन्न नहीं कर सका। उसके मन में संसद से घृणा उत्पन्न हो गयी। वह विचार करता था
कि वह तो धन पैदा करने के उपरान्त उसको व्ययकर संसद सदस्य बना है और ये लोग संसद सदस्य बनकर धन कमाने में लीन हो रहे हैं। यह उसे उल्टी गंगा बह रही समझ आयी थी।
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :