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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

वह इस निराशा के मनोभाव में था जब मिस्टर सिन्हा ने उसको एक सुनहरी किनारे वाला कार्ड दिखा दिया। प्रकाशचन्द्र ने मूछा, "यह क्या है?'

"प्रधानमंत्री जी ने आपको आज सायं चाय पर बुलाया है।''

''यह आज क्या हो गया है? आज तक उन्होंने कभी नजर भर-कर इस तुच्छ व्यक्ति की ओर देखा तक नहीं।"

''मैं समझता हूं कि कल आपका संविधान संशोधन के समय मत डालने जाने की'प्रसन्नता में है।"

उसी दिन लोक सभा अनिश्चित काल के लिये स्थगित हुई थी, अत: प्रकाशचन्द्र ने घर दिन के बारह बजे चलना था। यह उसने अगले दिन के लिये स्थगित कर दिया। वह प्रधानमत्री के साथ चाय-पीने के प्रलोभन का त्याग नहीं कर सका।

ठीक पांच बजे वह प्रधानमंत्री के महल में जा पहुंचा। उसे सामान्य विधि विधान के उपरान्त उस कमरे में पहुचाया गया, जिसमें प्रधानमंत्री पांच छ: अन्य लोगों के साथ चाय लेने के लिये खड़े प्रतीक्षा कर रहे थे। कुछ तो लोक सभा और राज्य सभा के सदस्य थे और कुछ एक-दो बाहर के व्यक्ति थे।

प्रकाश को विस्मय हुआ कि उनमें बाबू ज्योतिस्वरूप भी उपस्थित थे। प्रकाशचन्द्र के कमरे में प्रवेश करते ही प्रधानमंत्री ने आगे बढ़कर हाथ मिलाया और प्रकाशचन्द्र को लेकर एक पृथक कमरे में चले गये। प्रधानमंत्री ने कहा, ''मिस्टर प्रकाश! बुद्ध जयन्ती समारोह के लिए चन्दा चाहिए।"

''कितना चाहिए?" प्रकाशचन्द्र बहुत प्रसन्न था। वह विचार कर रहा था कि उसकी भी आवश्यकता अनुभव हुई है। प्रधानमंत्री बताने लगे, "बाबू ज्योतिस्वरूप ने दस सहस्त्र दिया है।''

''तो दस सहस्त्र मेरा भी लिख लीजिए।''

''नहीं, आपका दुगुना तो होना ही चाहिए।''

''कच्छी बात है। मैं आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहता।''

प्रकाशचन्द्र ने उसी समय अपने 'ब्रीफ़ केस' में से चैक बुक निकाली और बीस हजार का चैक लिखकर बिना पाने वाले का नाम लिखे प्रधानमंत्री के हाथ में दे दिया।

प्रधानमंत्री चैक ले बाहर आ गये और वह अन्य खड़े लोगों को बताने लगे, "प्रकाशबाबू ने बीस सहस्त्र दिया है।"

ज्योतिस्वरूप ने कहा, "बस? श्रीमान्, इनसे तो एक लाख लेना चाहिए।"

''वह किसी अन्य कार्य के लिए लेंगे।''

सब चाय के लिए अन्य कमरे में चले गये। वहां चाय होने लगी। एकाएक प्रधानमंत्री ने प्रकाशचन्द्र का सम्बोधन कर कहा, "मिस्टर प्रकाश बाबू! आप जानते हैं कि आपकी बगल में कौन बैठे थे?''

''जी! यह बाबू ज्योतिस्वरूप हैं। रहने वाले हमारे नगर के ही हैं, परन्तु बरेली में वकालत करते हैं।'' प्रकाशचन्द्र समझा नहीं कि यह प्रश्न किस कारण है?

''यह अपने दल में सम्मिलित हो गये हैं।''

''क्या लाभ होगा?"

''यह देश में समाजवाद लाने का यत्न कर रहे हैं और सुना है कि आपके चुनाव पर पटीशन हो रही है। अगर कहीं आप का निर्वाचन रह हो गया तो अगले उप चुनाव में यह हमारे प्रत्याशी होंगे।''

प्रकाश बाबू को विदित था कि ज्योतिस्वरूप पटीशन नहीं कर रहा। इस कारण उसने मुस्कुराते हुए ज्योतिस्वरूप की ओर देखकर कह दिया, "पण्डितजी! अब 'पटीशन' नहीं हो रही।"

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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