उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
"सुनाओ कमला! काम धन्धा कैसा चल रहा है?"
''पिताजी ने व्यापार का तो ऐसा संगठन बना रखा है कि कार्य किंचित् मात्र सावधानी से ही चलता जाता है। कुछ नियम ऐसे बन चुके हैं कि उनके अनुसार काम करने से भूल कम होती है।"
"परन्तु सरकार तो सब व्यापार अपने हाथ में लेने का विचार कर रही है।"
"यह ठीक है, प्रन्तु भैया! यह चलेगा नहीं। सरकारी नौकर भय से ईमानदारी और मेहनत से काम करें तो करें, वे मन से तो कर नहीं सकते।"
''भय से ही सही, पर निजी व्यवसाय में तो भय भी नहीं और नीयत भी नहीं।"
"ऐसा नहीं। अभी भी निजी क्षेत्र में अधिक कार्य कुशलता दिखायी देती है। पिताजी एक समाचार लाए थे कि बीमा कम्पनियों को सरकारी व्यवसाय बना लिया गया है और उनका जनरल मैनेजर एक बीमा काम का अनुभवी तो नियुक्त हुआ है, परन्तु वह किसी मिनिस्टर का सम्बन्धी है। वह राजनीतिक कार्य में भाग लेता रहा है। इस कारण उसका अल्प ज्ञान और अनुभव भी परिवर्धित होकर लोगों को दिखायी दिया है। साथ ही मंत्री महोदय तो प्रचार कार्य में दक्ष होते ही हैं, अत: उस जनरल मैनेजर की वाह-वाह हो जाती है। इस प्रकार शीघ्र ही करोडों रुपये उन हाथों में चले जायेंगे जिनसे वापिस आने की आशा नहीं। यदि आया भी तो क्षरित होकर ही आयेगा।"
"यह तो चलेगा ही। हम भी तो यही करते हैं। अपने सम्बन्धियों को जो अल्प ज्ञान और अल्प अनुभव रखने वाले हैं, उनको कारोबार के अध्यक्ष नियुक्त कर देते हैं।"
"अपने सब सम्बन्धियों को तो नियुक्त करते नहीं। निजी उद्योगों मैं एक योग्यता देखी जाती है जोसरकारी उद्योगों में नहीं देखी जाती।"
"क्या?''
"यही कि अध्यक्ष का अपनी हानि-लाभ उस उद्योग के हानि-लाभ से सम्बन्धित होता है, जिसका प्रबन्ध वह कर रहा होता है। इसके विपरीत सरकारी जनरल मैनेजर का हानि-लाभ उसके मिनिस्टर के साथ सम्बन्ध पर निर्भर करता है।"
प्रकाशचन्द्र इसका अनुभव दिल्ली में तीन महीने के प्रवास से ले आया था।
लोक सभा के प्राय: सदस्य कुछ न कुछ धनवानों के आश्रय ही निर्वाचन लड़े थे और अब सफल होने के उपरान्त वे अपने सहायकों का मन्त्रियों से सम्पर्क बना रहे थे। एक बात उसे यह पता चली थी कि सब मन्त्री गण लोक सभा के हदस्यों के एक टोले से सम्बन्ध रखते थे। पूर्ण कांग्रेस दल और उनके साथ निर्दलीय सदस्य टोलों मे विभक्त हैं और प्रत्येक टोला एक अथवा अधिक मन्त्रियों से सम्बन्धित है। अपने-अपने टोले के सदस्यों के मतों पर ही उनके मन्त्री पद आश्रित हैं। जिसका बड़े टोले से सम्बन्ध है वह अधिक लाभ वाले विभाग का मन्त्री है।
प्रकाशचन्द्र को कमला की बात में सत्यता का आभास हुआ था, परन्तु फेसका उद्देश्य कुछ दूसरा था। अब वह दिल्लीसे डिप्लोमैसी के व्यवहार की शिक्षा लेकर आया था। डिप्लोमैसी के अर्थ वह चाल- बाजी समझा था और चालबाजी में प्रथम पाठ वह यह पढ़ा था कि जिसको शत्रु माने, उससे सबसे अधिक मित्रता का प्रदर्शन किया कये और वह कमला से अब यही व्यवहार रखना चाहता था।
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :