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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

वह यह समझ रहा था कि कमला ने कारोबार को अति क़ुशलता से चलाया है और उसकी कार्यपटुता देख पिता अपने प्रुत्र को कारोबार से पृथक कर देने का विचार कर रहे हैं। उसने पूछा, "कलकत्ते का काम तो समेटा जा रहा है और उसके स्थान कोई नया काम आरम्भ करने का भी विचार है क्या?"

''कई कार्य विचाराधीन हैं। उनमें से एक मेरा सुझाव था और पिताजी ने वह मान लिया है। अतः उसके अनुसार कार्य भी आरम्भ हो गया है।"

''क्या कार्य आरम्भ हो गया है?''

"यह सामने वाले मकान में हमने अन्न क्षेत्र खोल दिया है। पहले रामजी ने कुछ परिवारों को आर्थिक सहायता का आयोजन किया था। मैंने यह सुझाव दिया कि उससे अधिक लाभ होगा भूखों को अन्न खिलाने से और नंगों को वस्त्र देने से। इसके लिये पिताजी नई सवा लाख वर्ष का व्यय स्वीकार किया है।

"मैं इसका प्रबन्ध कर रही हूं। इस समय तीन सौ के लगभग लोग निर्धन व्यक्ति नित्य एक समय भोजन पाते हैं। इस तीन सौ में दो सौ से ऊपर हैं, जो विद्यार्थी हैं। स्कूलों के हैड मास्टरों की सिफ़ारिश पर उनको टिकट जारी किये जाते हैं और वे एक समय दिन में आकर भोजन करते हैं। आजकल स्कूल प्रात: छ: से बारह बजे तक लगते हैं और वे छात्र बारह से एक बजे तक भोपीन करने आते हैं। प्रत्येक को हल्का खाना सायंकाल खाने के लिये लिफाफों में बन्द दे दिया जाता है। एक सौ के लगभग अन्य होते हैं। जो समय पर आ गया, खा गया।

"इसके साथ मैं विद्यार्थियों तथा अन्य अभाव ग्रस्तों के लिये वस्त्र देने का प्रबन्ध कर रही हूँ। इसके लिये एक सलाहकार समिति बतायी है और वह समिति किस प्रकार के वस्त्र किनको वेने उपयुक्त होंगे, विचार कर रही है।"

अल्पाहार लिया जा चुका था और कमला कार्यालय में जानै के लिये उठ खड़ी हुई थी। उठते हुए प्रकाशचन्द्र ने लिया, "कमला! तुम समझती हो कि कलकत्ता के काम बन्द होने वाली हानि इससे पूर्ण हो जायेगी?''

''हां भैया! यह उस स्टीम इन्जिन की भांति शक्ति का विकास कर रहा है, जिससे पूर्ण उद्योगतन्त्र चल रहा है। पुराना इन्जिन बदल कर यह नया इन्जिन लगाया है। पिताजी का कहना है कि यह इन्जिन अभी से लाभ देने लगा है।"

प्रकाश हंस पड़ा। वह विचार कर रहा था कि क्या दिल्ली के पांच सौ पण्डित पागल हैं अथवा बदायूँ की यह लड़की और इसका पिता उन्माद के रोगी हैं? इस पर भी उसने कुछ कहा नहीं और सब कमरे से निकल आये। कमला कार्यालय जाने के लिये तैयार होने अपने कमरे में चली गई।

विमला और शीलवती पीछे रह गयी थीं। शीलवती का विचार था कि विमला के भविष्य का निश्चय होने वाला है। अत:उसने विमला से पूछ लिया, "तुमसे अभी तक भैया की भेंट हुई है अथवा नहीं?" "अभी नही। यहीं उनके दर्शन हुए हैं।"

"भगवान् तुम्हरी सहायता करेंगे।"

''हां, मुझे विश्वास है।"

दोनों बाहर निकल आयीं और प्रकाश के पास से निकल कमला के कमरे की ओर चलीं तो प्रकाश ने विमला को आवाज़ दे दी, "विमला!"

विमला खड़ी हो घूमकर मुख देखने लगी। प्रकाश ने पूछ लिया, "विश्वम्भर कहां है?''

''अपनी मां के साथ अल्पाहार ले रहा होगा।"

''मां? कहां है मां उसकी?"

''अपने कमरे में। मेरा अभिप्राय बहन श्रीमती से है।"

''वह उसकी मां कब से बनी है?"

"जबसे आपसे विवाह हुआ है।"

''अच्छा सुनो! तुमसे एक काम है।"

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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