उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
"इससे तुमको क्या लाभ होगा?"
''मुझे तो लाभ अभी से होने लगा है। जब से इसे मैंने अपने कमरे में रखा है तो इसकी तोतली बाते सुन और फिर इसको नयी-नयी बात समझाने में बहुत रस मिलता है।"
''मैं तो आज जा रहा हूं।"
"मैं नहीं जा रही।"
''तो तुम मुझसे अलग रहोगी?"
''वह तो पहले भी रहतो हूँ। हां, एक बात हो रही प्रतीत होती है। पहले मैं अपने पूर्ण ससुराल से अलग रहती थी और अब मे परिवार मैं मिलकर रहने की इच्छा कर रही हूं।"
''तुम लोभी हो रही हो।"
''कुछ ऐसा ही प्रतीत होता पै, परंतु यह इस बच्चे के लिये ही है। आज माताजी आयी थीं और कह रही थीं कि शीघ्रातिशीघ्र कोई अच्छा सा मुहूर्त्त निकलवा गोद लेने की रस्म पूरी कर लूं और फिर उसके पालन-पोषण में लग जाऊं। एक वैश्य का परिवार चलना चाहिये।"
प्रकाशचन्द्र हंस पड़ा। हंसते हुए पूछने लगा, "तो क्या एक ब्राह्मण अथवा क्षत्रिय का परिवार नहीं चलना चाहिये?"
"ब्राह्मण का परिवार तो उसके सब यजमान अथवा शिष्य होते है। उसे अपने परिवार की इतनी चिन्ता नहीं होती। क्षत्रिय का परिवार कच्चे धागे से लटक रहा होता है। जो लोग बन्दूक, तलवार लिये दूसरों से लड़ने-मरने को घूम रहे होते हैं, वे अपने परिवार को सदा खो देने के लिये तत्पर रहते हैं। यह बात न हो तो उसका स्वभाव ही विनष्ट हो जाये। द्विजों। मैं यह केवल वैश्य ही हैं जिनको उत्तराधिकारी की आवश्यकता रहती है।"
''बहुत कर्म-धर्म की बात सीख गयी हो?"
''यह कर्मधर्म नहीं। यह तो स्वार्थ है। अब घर में बच्चा आया है तो उसके हित की बात विचार करना स्वार्थ है और परमार्थ भी। मुझे तो इससे अति स्फुर्ति मिली है।"
"तो तुम यही रहोगी?''
''मैं तो रहूँगी ही। मैं आपको भी आपके स्वार्थ की बात बताती हूँ। आपको भी यहां घर में ही रहना चाहिये। इसमें ही आपका, मेरा और अब इसे बच्चे का भी, हित प्रतीत होता है।"
प्रकाश को अपने व्यवहार की श्रेष्ठता पर सन्देह तो पहले ही हो रहा था, परन्तु अब श्रीमती के लड़के की ओर ध्यान दिलाने ने उसको विचार करने पर विवश कर दिया। अत: वह एकान्त में बैठ विचार करने के लिये नीचे ड्रायंग रूम में चला गया।
वहां जाकर अभी बैठा ही था कि अदालती चपरासी सम्मन लिये हुए वहां पहुंच गया। हवेली के चौकीदार ने उसे प्रकाश बाबू के सामने उपस्थित कर दिया। अदालती प्यादे ने सलाम की और सम्मन सामने कर दिये।
प्रकाश ने लेकर पढ़ा। सम्मन हिन्दी में लिखा था। बरेली में निर्वाचन अधिकारी की ओर से बुलावा था। लिखा था, "बदायूं के रामलाल वल्द गौरी शंकर, मतदाता संख्या 3542, वार्ड बाहरी हल्का यह पटीशन करता हूँ कि प्रकाशचन्द्र वल्द सेठ कौड़ियामल्ल का निर्वाचन रह कर दिया जाये।
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :