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उपन्यास >> अंधकार

अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

''प्रकाशचन्द्र ने अपना निर्वाचन अभिमान राम विजय और रावण पराजय की कथा कहकर तथा साम्प्रदायिकता भड़का कर लड़ा है।

"यह संविधान के विरुद्ध है। संविधान के अनुसार साम्प्रद्रायिकता भड़का कर मत प्राप्त करना वर्जित है।

''प्रकाशबाबू ने यह किया है, अत: उसका निर्वाचन रह होना चाहिये और उससे कम प्राप्त करने वाले ज्योतिस्वरूप बाबूको विजयी घोषित करना चाहिए।"

अदालत का आदेश था कि प्रकाशबाबू अमुक तिथि को निर्वाचन कमिश्नर के सम्मुख उपस्थित हो बताये कि क्यों न उसका दो फ़रवरी सन् 1957 के निर्वाचन में सफल होने को सामान्य किया जाये?

इस सम्मन के मिलने पर प्रकाशचन्द्र अपना घर वालों से झगड़ा भूल गया। उसे श्रीमती के कथन में सार प्रतीत होने लगा और वह अपने पिता से बनाये रखने में अपना हित मानने लगा।

उसने सम्मन पर हस्ताक्षर कर दिये और अर्ज़ी दावे की एक प्रति अपने पास रख ली। जवाब दावा दाखिल करने के लिये अभी डेढ़ महीना था। इस कारण उसने यही विचार किया कि पिताजी के आने की प्रतीक्षा की जाये। साथ ही उसने पिताजी को इस पटीशन की सूचना एक पत्र द्वारा लिखकर भेज दी।

इस समय मिस्टर रमेशचन्द्र सिन्हा आया और प्रकाशचन्द्र ने उसे पटीशन की बात बता दी।

''यह ज्योति स्वरूप जी ने ही करायी है।''

''देखो सिन्हा! इस व्यक्ति का पता करो कि वह कहां रहता है और क्या करता है? कितनी हैसीयत का आदमी है?''

सम्मन से पटीशन करने वाले का नाम तथा मतदाता क्रमांक लिखा दिया। सिन्हा पता करने चला गया। प्रकाशचन्द्र ने चौकीदार को भेज मुंशी कर्तानारायण को बुला भेजा।

कर्तानारायण सूरदास को बद्रीनाथ और गंगोत्री तथा केदारनाथ तक ढूंढ आया था। वह कहीं नहीं मिला था।

वह जब लौटा था तो सेठजी दौरे पर थे और वहां से अभी लौटे नहीं थे। वह कार्यालय में कार्य करता था; यद्यपि जनरल मैनेजर जानता था कि वह किसी कार्यालय के काम के लिये नहीं रखा हुआ। उसे सेठजी के व्यवसाय के अतिरिक्त कामों के लिये ही रखा हुआ था। अत: जब प्रकाशबाबू का बुलावा आया तो वह अपने स्थान से उठ चला गया।

प्रकाश अभी भी ड्रायंग रूम में बैठा हुआ था। कर्तानारायण आया तो प्रकाश ने पूछ लिया, "मुन्शीजी! कब लौटे हैं?"

''चार दिन हुए हैं।"

"और कहां ढूंढ आये हो सूरदास को?"

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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