उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
''बहुत खूब! विश्वम्भर।" बच्चे को सम्बोधन कर धन्नाराम ने जेब से एक सौ रुपये का नोट निकार कहा, "यह लो। यह तुम्हारे पाठ याद करने का इनाम।"
लड़के ने नोट नहीं लिया। वह श्रीमती का मुख देखने लगा।
श्रीमती ने कह दिया,"ले ली और नानाजी के- चरण स्पर्श करो।"
विश्वम्भर उठकर आगे आ गया और नोट को पकड़ सिर को भूमि से माथा लगा नमस्कार करने लगा। श्रीमती ने समझा दिया, "इसकी छोटी मां ने इसे ठाकुरजी को साष्टांग प्रणाम करने का ढंग सिखाया है।''
अनायास धन्नाराम ने बच्चे को गोदी में उठा लिया और उसका मुख चूमकर कहा, "तुम बहुत अच्छे बच्चे हो। जानते हो यह क्या ई?''
"क्या है?"
"यह सौ रुपये का नोट है।"
"वह क्या होता है?"
''इससे मिठाईयां, सुन्दर वस्त्र और खिलौने मोल ले सकोगे।"
"वह तो बड़ी मां ने पहले ही ले दिए हैं।"
"अब और ले सकोगे।"
बात श्रीमती ने बदल दी। उसने कहा, "मां! मैं इसको गोद लेने कई रस्म सम्पन्न करना चाहती हूँ।"
"कब करोगी?''
"जब सब परिवार के लोग बदायूँ आ सके।"
"अच्छा, ऐसा करो। तुम अपने श्वसुर से सम्मति कर लिखना। दो-तीन तिथियां लिखना। उनमें सै एक हम चुन लेंगे।"
''ठीक है। लिखूँगी।''
"तो आज तुम लोग यहां ही रहोगे?''
''हां। हम सांय पाच बजे तक रहेंगे।"
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :