उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
कुर्सी पर बैठते हुए सेठजी ने सूरदास को नमस्ते कहकर अपने वहां होने का परिचय दे दिया। सूरदास ने खड़े होकर हाथ जोड़ प्रणामकर दिया। मृदुला खाना परस ही रही थी कि बात तारकेश्वरी ने आरम्भ कर दी। उसने सूरदास को कहा, '"राम! सेठजी का आग्रह है कि तुम बदायूं चलो। बताओ, क्या इच्छा है।"
"मां! तुम क्या चाहती हो?''
"भला मां क्या चाहेगी? इसके बताने की भी आवश्यकता है?''
"तब तो बात सरल हो गयी है। पिताजी, मैं रहूंगा तो यहां
ही। आपके मुझ पर बहुत अहसान हैं, परन्तु आपकी कृपा की तुलना में मुझे मां का इस शरीर निर्माण में योगदान, कम मूल्य का प्रतीत नहीं हो रहा। अत: आप स्वीकार करें तो मां के पास ही रहूं। परन्तु अब आपसे भागकर कहीं छुपूँगा नहीं। मैं बदायूं माताजी के चरण स्पर्श करने चलूंगा। एक बात मैंने आपसे कल कही थी कि कमला का विवाह हो जाना चाहिए। तब मैं वहां चलने में कठिनाई अनुभव नहीं करूंगा।"
''इसका क्या अर्थ है राम? यह कमला के विवाह की शर्त क्यों है?''
''पिताजी जानते हैं। परन्तु यह शर्त नही, केवल सम्मति है।"
तारकेश्वरी को दोनों में सम्बन्ध का सन्देह हुआ तो वह सेठजी का मुख देखने लगी। सेठजी ने बात स्पष्ट कर देनी उचित समझी। उसने. कहा, "कमला मेरी लड़की है। इस समय अठारह वर्ष की हो चुकी है और वह राम से विवाह की इच्छा करती है। जब यह वहां से आया था तो कमला का भाई इस विवाह का घोर विरोध करता था। कमला के माता और पिता राम और कमता की इच्छा का विरोध नहीं करना चाहते थे, परन्तु राम कमला में रुचि. रखता हुआ भी हमारे परिवार में वैमनस्य उत्पन्न करने मे, कारण नही बनना चाहता था। इस कारण अवसर पाते ही यह हमसे सम्बन्ध विच्छेद कर बैठा।
''अब पुन: सम्बन्ध बनने की अवस्था में यह हमारे परिवार की शान्ति का विचार करते हुए इस बात का आग्रह कर रहा है कि कमला का विवाह हो जाना चाहिए।"
तारकेश्वरी ने कुछ शान्ति अनुभव करते हुए पूछ लिया, "राम! इस विवाह में तुम्हारा आग्रह क्यों है? जब और जहां कमला तथा उसके माता-पिता चाहेगे, विवाह हो जायगा। क्या तुम उसके सामने जाने से भयभीत हो?''
''यह बात नही मां! मेरे भयभीत होने में कोई कारण नहीं। मैं अपने पर अनुग्रह करने वाले परिवार की मान-प्रतिष्ठा और शान्ति के विचार से ही यह कह रहा हूँ।"
इस पर सेठजी ने कहा, "मैंने आज दस बजे? के लगभग कमला को टेलीफोन से तुरन्त बम्बई आने को कह दिया है। मैं आशा करता हूँ कि वह कल किसी समय भी यहां आ जायेगी।
''राम! मेरे घर की शान्ति की बात छोड़ो। वह तो भगवान् के हाथ में हैं। मैंने अपनी ओर से किसी का भी विरोध न करने का निश्चय किया हुआ है। समझ-समझा देना और फिर यथा सम्भव सबके कार्यों में सहायता कर देना यह ही सदा मेरे व्यवहार की धुरी रही है। इसके उपरान्त कोई प्रसन्न 'होता है अथवा नाराज़ होता है, यह देखना मेरो काम नही।
"वास्तविक बात यह है कि कमला तुमसे विवाह करती है अथवा किसी अन्य से विवाह करती है, यह भी तुम दोनों के विचार करने की बात है। वह यहां आ रही है। तुम स्वयं उससे बात कर लेना। अब तुमको सम्मति देने वाली स्नेहमयी माता तुम्हारे पास है। तुम चाहो तो उससे भी सम्मति कर सकते हो।
''इन सब बातों का हमारे यहां चलने से सम्बन्ध नहीं। मैने पचास हज़ार रुपया लगाकर वहां तुम्हारे रहने कई लिए मकान बनवाया था। उसी मकान की भूमि पर रामं मन्दिर है और वहां के निर्धनों के लिए अन्न क्षेत्र है।
"कमला अपनी एक बहन के साथ वहां मन्दिर का और अन्न क्षेत्र का प्रबन्ध कर रही है। इससे यदि तुम वहा चलो तो उस राम मन्दिर को चार चांद लग जायेंगे।
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :