उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
"वह अभी सो रही प्रतीत होती है।"
''आप कार्यालय जा रहे हैं (r"
''हां।''
"मैं भी वहां आ रहा हूं।''
इतना कह वह स्नानादि में लग गया। साढ़े ग्यारह बजे से पहले कार्यालय में नहीं पहुंच सका। सेठजी उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे।
''हां, क्या चाहते हो?"
''मैं आपसे अब पृथक् कारोबार करना चाहता हूँ।"
''कारोबार से पृथक् तो तुम पहले ही किये जा चुके हो। अब तुमको अपने से पृथक् करना शेष रह गया है। देखो," सेठजी ने अपना मेज के नीचे 'लॉकर' खोल उसमें से एक मुहरबन्द लिफ़ाफ़ा निकाल कर सामने करते हुए कहा, "यह है मेरा सम्पत्ति का बटवारा। इसे तुम किसी वकील के पास ले जाओ और उसे मेरे पास भेज दो, जिससे मैं इसकी अदालत में रजिस्ट्री करवा राकूं। यदि इसमें कुछ आपत्ति-जनक है तो वह वकील मुझे समझाये तो मैं हसको ठीक कर दूंगा।''
प्रकाशचन्द्र इस पूर्व निश्चय पर विस्मय करता हुआ पूछने लगा, "यह आपने कब लिखा था?"
''जब तुम निर्वाचन लड़ रहे थे और उसमें राम की सहायता वर्जित कर दी थी। मुझे कुछ ऐसा समझ आया था कि तुम ज्ञानहीन कोई महान अज्ञता का कार्य कर रहे हो और अज्ञानियों के साथ यात्रा नहीं की जा सकती। वे तो अपनी नौका में ही छेदकर उसमें स्वयं ही डूबने का कार्यक्रम बनाये हुए हैं।"
''परन्तु पिताजी! मुझ पर तो निर्वाचनों में राम कथा कराने के कारण निर्वाचन रह करने की याचिका न्यायालय में दायर हुई है।"
सेठजी ने आंखें मूंद कर कहा, "मुझसे पृथक् तो तुम होगे ही। हां, यदि तुम एक वचन दो कि तुम इस याचिका के अस्वीकार होने पर लोक सभा से त्याग पत्र दे दोगे तो मैं अपने पास से सब व्यय कर यह मुकद्दमा तुम्हारे लिये लड़ सकता हूँ और आशा करता हूं कि तुम इसमें विजयी हो जाओगे।"
''तो फिर मुकद्दमा लड़ने की क्या आवश्यकता है?''
''वह तो परमात्मा के नाम पर प्रतिबन्ध हटवाने के लिये है।''
"और विजयी होने पर भी त्याग-पत्र देने की बात किसलिये है?''
यह इस कारण कि वह अज्ञानियों का संसार है। वहां किसी भी भले व्यक्ति को जाने की आवश्यकता नही।"
''तो देश का राज्य कैसे चलेगा?''
''यह तुम्हारे वहां जाने से नहीं चलेगा, न ही इन लोगों के करनी से चल रहा है जो वहां गए हैं। देश के कोटि-कोटि मनुष्य यदि खाली हाथ पुलिस वालों से नियन्त्रण में बँध रहे हैं तो पार्लियामैण्ट में बैठ परस्पर झगड़ते और गालियां देने वाली भीड़ के किसी गुण के कारण नहीं है। इसमें कोई अन्य तत्व काम कर रहा है।"
''पर पिता जी! मुझे तो इसमें कोई युक्ति प्रतीत नहीं होती कि पहले तो याचिका को रद्द कराने के लिए, सम्भवत: सुप्रीम कोर्ट तक मुकद्दमा लड़ू और सफल होने पर लोकसभा से त्याग पत्र दे दूं।''
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :