उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
''मा! मैं नहीं जानती। मैं बता नहीं सकती, केवल अनुभव करती हूं। इस पर भी अब तुम्हें बता देती हूं कि मैं उनके प्रति पति की भावना रखती हूं।"
"पति क्या होता है?"
"जिससे विवाह हो जाता है।"
''तुम्हारा उससे विवाह नहीं हो सकेगा।"
"क्यों?"
''तुम दोनों में किसी प्रकार का मेल नहीं है। वह.........।" चन्द्रावती कहती-कहती रुक गयी। कमला मां का मुख देखने लगी। मां ने बात बदल दी। उसने कहा, "देखो कमला! परिवार की मान-प्रतिष्ठा का भी तो विचार करना चाहिये। एक करोड़पति की लड़की का विवाह एक भिखारी से नहीं हो सकता।"
कमला ने इसका प्रतिवाद नहीं किया। माँ अपने क्रोध को शान्त कर कुछ प्रेममय सीख देना चाहती थी और वह अपने चित्त को स्वस्थ करने के लिये यत्न करती हुई मौन थी। एकाएक कमला ने कहा, "तो मां! मैं जाऊं?"
''जाओ। कहां? नहीं, बैठो। अभी बात समाप्त नहीं हुई।" वह इतना कह चित्त को शान्त करने के लिये चुप हो गई।
''देखो कमला।" आखिर चन्द्रावती ने बात आरम्भ कर दी। उसने कहा, "तुम्हारे पिता एक लड़के के विषय में विचार कर रहे हैं। तुमने उसे अवश्य देखा होगा। मेरी मौसी है, शारदा। उसका पोता हे। इसी वर्ष एम0 ए0 की श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ है और अभी बेकार है। मैंने सुझाव दिया है और तुम्हारे पिता कल उसे तार देकर बुला रहे हैं। मैं समझती हूं कि वह तुम्हारे साथ विवाह के लिये पसन्द कर लिया जायेगा। वह यहां अपने कारोबार में भी लग जायेगा और तुम उसके साथ सुखी रहोगी।"
"सब व्यर्थ है मां! मैं मन में उनसे विवाह कर चुकी हूँ।"
''यह उसको देख पीछे निश्चय करना। साथ ही तुम्हें अपने माता-पिता का कहा मानना चोहिये।"
कमला चुप रही। इस पर मां ने कह दिया, "आज से सूरदास के कमरे में तथा कहीं भी उससे मिलने अकेली नहीं जाना। अब जाओ।'
कमला उठ कर चली गयी। चन्द्रावती ने उसकी अध्यापिका से पूछ लिया, "यह क्या है शील?"
''मां जी! में नहीं बता सकती। केवल इतना जानती हूँ कि वह कहीं से प्रेम सागर पा गयी थी और उसे रसपूर्वक पढ़ा करती है।"
''और उसमें क्या लिखा है?"
"गोपियों की भगवान् कृष्ण के प्रति प्रेम की कथा उसमें वर्णित है।"
चन्द्रावती गम्भीर भाव में अध्यापिका का मुख देखती रह गयी। "प्रेम सागर'' तो उसकी अलमारी में ही रखा था। वह उठी और अलमारी खोल देखने लगी। 'प्रेमसागर' उसमें नहीं था। कई वर्ष हुए, वह मथुरा गयी थी और वहां एक पुस्तक विक्रेता की दुकान से मोल ले आयी थी। घर लाकर उसने पुस्तक अलमारी में रखी तो भूल गयी और उसने उसे खोल कर देखा भी नहीं कि वह किस विषय की पुस्तक है। उसका विचार था कि परमात्मा के प्रेम की ही कथा रही होगी।
अध्यापिका शीलवती के इस रहस्योद्घाटन से चिन्तित मन उसने पूछ लिया, "क्या उसमें कुछ अश्लील बातें लिखी हैं?"
"मां जी! उसमें तो गोपियों के पवित्र प्रेम की ही बात लिखी है, परन्तु मैं अब यह समझी हूँ कि पवित्रता का सम्बन्ध मन और आत्मा से होता है। अपवित्रता उसमें तब आ जाती है जब किसी प्रेम का व्यवहार शरीर से बनता है।
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :