उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
''मन से ही शरीर का कार्य चलता है, परन्तु यह सदा अपवित्र ही होगा, ऐसी बात नहीं। जब यह-कार्य स्वार्थमय हो जाता है। तब हो अपवित्र होता है।"
"देखो शील! यह अब व्यर्थ की बातें हैं। उसे समझाओ कि पुस्तकों में लिखी बातें सदा ही अनुकरणीय नहीं होतीं। कभी उनका विरोध अर्थात् उन पर नियन्त्रण भी आवश्यक हो जाता है।"
''मैं कहूँगी। इस पर भी मेरा विचार है कि अब इसका कही विवाह कर देना चाहिये। जब तब एक बार विवाह का विचार उत्पन्न हुआ तो वह हो ही जाना चाहिये।"
"हो जायेगा।" चन्द्रावती ने कहा और उठ पड़ी रात को उसने सेठजी से कमला से हुई पूर्ण बात कह दी। सेठजी बात सुनकर गम्भीर भाव में बैठे रह गये। इस पर सेठानी ने अपनी मौसी शारदा
के पाते भागीरथलाल की बात कह दी।
सेठजी ने कहा, "भागीरथ को मैंने देखा है, परन्तु सूरदास का वह मुकाबला नहीं कर सकेगा।"
"क्यों?"
''तो तुम देखती नहीं हो। सूरदास के मुख पर एक विशेष ओज है जो तुम्हारे भतीजे भागीरथ के मुख पर नहीं है।"
''परन्तु वह नेत्रविहीन है।"
"हां, परन्तु उसकी यह कमी सुन्दरदास पूरी कर रहा है।''
"तो आपकी इच्छा लड़की को अन्धकार में धकेल देने की है क्या?''
''मेरी अभी कुछ भी इच्छा नहीं। अभी तो यह चिन्ता है कि क्या जाने यह प्रेम कितना गहरा हो चुका है? मैं यह सोच रहा हूँ कि सूरदास को घर में लाकर रखने में कहीं मैंने भूल तो नही की?''
"उसे घर से निकाल दें।"
''क्यों?''
''तो आप नहीं समझे? जब कोई चाट के खौंचे वाला मकान के बाहर आ बच्चों का स्वभाव बिगाड़ने लगे तो उसे वहां से भगा नहीं देना चाहिये क्या?"
''यह तो ठीक ही है, परन्तु विचारणीय बात तो यही है कि क्या वह चाट के खौंचे वाला है और क्या उसकी चाट से बच्चों का स्वभाव खराब होने वाला है?"
''आप यह बताइये कि सूरदास से कमता का विवाह ठीक है क्या?''
''न तो ठीक है, न गलत है। सूरदास से बात करूंगा।"
"आप सठियाते जाते है।"
"सत्य यदि यह सत्य है तो समय से कुछ पहले ही है। अभी मैं अड़तालीस वर्ष का ही हूं। अच्छा चन्द्र बताओ तुम क्या कहती हा?"
"मैं चाहती हूं कि भागीरथ को कल तार दे बुला लीजिये और वह व्यापार में अतका हाथ बटाये तो उससे कमला का विवाह कर दीजिये।"
''यह सब बातें मेरे वश में तो हैं नहीं। देखो, मैं क्या कर सकता हूँ? मैं कल उसे तार दे बुला लूंगा। उसे अपने काम में लगा लूंगा। वह काम करेगा अथवा नहीं, कह नहीं सकता। कर सकेगा क्या? मुझे कठिन प्रतीत होता है। स्कूल-कालेजों में पढ़ा लड़का एक पोस्टमास्टर का पुत्र और क्लर्कों के परिवार का सदस्य, व्यापार की ऊंच-नीच को समझ नहीं सकेगा। इस पर भी यत्न कर सकता हूं। इस पर भी उसके माता-पिता उसके एक दुकानदार बनने को पसन्द करेंगे अथवा नहीं, साथ ही वह कमला से विवाह स्वीकार करेगा क्या? ये सब बातें मेरे अधीन नहीं हैं।"
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :