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उपन्यास >> अंधकार

अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

''परन्तु बीच में रविवार तो गया है। शनिवार को शाम को चलते तो रात के समय पहुंच जाते। बरेली से तो नित्य बसें आती हैं। बरेली है ही कितनी दूर?"

"पर पिताजी से आने की स्वीकृति भी तो लेनी थी। वह मुरादाबाद में थे। तार मुरादाबाद गया था। वहां से पिताजी ने पत्र में डाल कर बरेली भेज दिया। मैंने पुन: पिताजी को पत्र लिख पूछा कि क्या करूं? उन्होंने मुझे मुरादाबाद बुला भेजा। वहां माताजी और बहन जी से भी सम्मति हुई है और तब ही आ सका हूं।"

''बहुत विचारकर यहां आये हो?'' चन्द्रावती ने पूछ लिया।

"बुआ। बात कुछ ऐसी ही समझ आयी थी जिसमें विचार की आवश्यकता थी। ऐसे ही अन्धेरे में कैसे कूदा जा सकता है?"

''क्या समझे थे?''

भागीरथ अपने मन की बात कहने में झिझकने लगा था। वह गम्भीर हो विचारकर बोला, "पांच वर्ष से अधिक हुआ है कि मैं यहां आया था। वह प्रकाश दादा के विवाह का अवसर था। उस समय बुआ ने मेरी मां से कहा था और हमारे घर में उस बात पर चर्चा चली थी। तब मैं अभी बी ए0 फर्स्ट पार्ट में पड़ता था। इस कारण उस विषय में कुछ जल्दी न समझ माताजी ने आपको लिखा नहीं था।

"अब तार आने पर माता-पिता ने समझा है कि उसी विषय पर बात होगी। तार भेजने का अर्थ हम यह समझे हैं कि पानी नाक तक आ गया है। इस पर भी विचारोपरान्त किसी प्रकार का निश्चित मत बनाकर आना ही उचित समझ आया है।''

चन्द्रावती यद्यपि कुछ अधिक पढ़ी-लिखी स्त्री नहीं थी, इस पर भी उसे इस पढ़े-लिखे युवक की बातें पसन्द नहीं आ रही थी, परन्तु वह पूर्ण बात जाने बिना मुख्य विषय पर वार्त्तालाप करना नहीं चाहती थी। और वह विचारकर रही थी कि किस प्रकार जाने कि इसके माता-पिता ने क्या विचार किया है? वह अभी सुन और समझने का यत्न ही कर रही थी कि शीलवती ने चन्द्रावती के मुख पर परेशानी के चिह्न देख बातों का सूत्र अपने हाथ में लेते हुए कह दिया, "भाईसाहब। आप तो बहुत ही समझदार प्रतीत होते हैं जो अन्धेरे में कुदने से पहले विचार भी करते हैं?''

भागीरथ ने कह दिया, "तो क्या यह नहीं होना चाहिये?"

''अवश्य होना चाहिए, परन्तु भाईसाहब। यह बात सबके लिये तो हो नही सकती। जो सूझ-बूझ ही न रखे, क्या वह सोचेगा। उसका विचार क्या फल लायेगा? देखों भैया, हमारे यहां एक सूरदास रहते हैं। बेचारे जन्म के अन्धे हैं। एक दिन सेठजी ने पूछ लिया, "राम बम्बई चलोगे?"

वे पूछने लगे, 'वहां क्या है?'

''सेठजी ने बताया, 'वहां सागर तट है।''

''वह कहने लगे 'अन्धे को अन्धेरे में क्या सागर और क्या तट? 

"सेठजी ने कह दिया, वह तो तुम्हारे लिये सब स्थान पर है।''

"वह कहने लगे, ''नहीं पिताजी। बम्बई में घटाटोप अन्धकार है।''"वह पिताजी के साथ नहीं गये।''

भागीरथ को याद आ गया कि एक सुन्दर युवक यहां रहता था। वह एक सुन्दर नाम के नौकर के हाथ का आश्रय लिये आय जाया करता था। इस बात के स्मरण आते ही उसने पूछ लिया, "वह कहां है?"

"वह प्रकाश के साथ निर्वाचन कार्य पर गये हुए हैं।"

''भला वह क्या निर्वाचन कार्य करेगा?''

''वह निर्वाचन सभाओं में राम कथा और भगवद्भजन करता है।"

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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