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उपन्यास >> अंधकार

अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

"उसने बताया, 'चित्त वैचैन था इस कारण अपने ठाकुरजी के कमरे में गयी थी।

''उनके चरणों में तो शान्ति मिलती ही है। अब प्रसन्न हूं। मैं समझती हूं कि अब नींद आ जायेगी।"

''मैं अपनी वस्तु ले और उसकी बात पर विश्वास कर चली आयी। परन्तु अगले दिन जब मैं स्नान कर पूजा के कमरे में जाने लगी तो मुझे पता चला कि पूजा गृह की चाबी तो मेरे तकिये के नीचे रखी थी और वह वहां उस समय भी पड़ी थी।

''उस समय मुझे कमला के ठाकुरजी के चरणों में शान्ति प्राप्त करने की बात स्मरण नहीं आई, परन्तु जब प्रकाश लखनऊ से लौट आया और कमला ने उसे तिलक लगाया तो सब बात मेरे मन में चक्कर काटने लगी। मुझे कुछ यह समझ आया कि वह सूरदास के के पास मुख काला करने गयी थी और वहां से सन्तुष्ट हो लौटी थी, परन्तु यह सब अनुमान ही तो है। विश्वास से कुछ कह नहीं सकती और लड़की से सीधे शब्दों में बात करने में संकोच होता है।"

"माताजी। आज उसने यह कहते हुए कि उसका विवाह हो चुका है मुझे आपको यह सूचित करने के लिए कहा है कि वह अपने को राम भैया की विवाहित पत्नी जानती है।

''मैंने उसको समझाने का यत्न किया था कि विवाह का सम्बन्ध शरीर से होता है। मन से प्रेम किया जाता है। साथ ही यह भी समझाने का यत्न किया है कि प्रेम के अनेक रूप हैं। प्रणाय उनमें एक है।

''इस पर उसने कहा है कि जब चरण छू लिये और माथे पर तिलक दे दिया तो शारीरिक सम्बन्ध भी हो गया है।

''एक बात उसने कही है कि बहु यत्न कर रही है कि पंच महा यज्ञ करने की सुविधा भी प्राप्त कर ले। इस विषय मैं मैंने उसे मनु-स्मृति पढ़ाते हुए पंच महायज्ञों को इस व्याख्या सहित बताया था। वह मानती है कि सन्तान पैदा करना और उनका पालन-पोषण करना पितृ यज्ञ है।"

''इससे बात स्पष्ट नहीं होती।" चन्द्रावती ने चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा।

''मैं इससे यह समझती हूं कि अभी शरीर से विवाह नहीं हुआ।" इस पर चन्द्रावती गम्भीर हो गयी। कुछ देर तक मौन बैठी विचार करती रही और फिर बोली, "मैं अपने मुख से भला कैसे कह सकती हूं कि वह इस अन्धे की लाठी का सहारा बने।"

''माताजी। समस्या अति विषम है। निर्वाचनों के उपरान्त सूरदास को यहां से चलता करिये और तब तक प्रकाश भैया को कह दीजिये कि वह सूरदास का कार्यक्रम कहीं अन्यत्र बनाते रहें।"

"उसके लिये मकान तो पृथक बनवाया जा रहा है। नक्ष नगर पालिका को भेजा जा चुका है। इसके स्वीकार होते ही दो महीने में मकान बन जायेगा। तब तक निर्वाचनों का कार्य चलेगा।"

''पर माताजी। विवाह भी तो होना चाहिये।"

"वह इस अन्धे के साथ नहीं होगा। सूरदास का अपना उपयोग है। वह हम कर रहे हैं, परन्तु वह दामाद बनाने के योग्य प्रतीत नहीं होता।"

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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