उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
''यहाँ शोक और मोह का अर्थ है कि किसी मनुष्य से मिलने की चाह अथवा न मिल सकने पर शोक। जब मनुष्य यह समझने लगता है कि परमात्मा सर्वव्यापक है और जब ज्ञानी मनुष्य अपने को उस सर्व-व्यापक आत्मा से एकमय कर लेता है, तब वह सम्पूर्ण प्राणियों से एक हो गया समझने लगता है। सब उसको उसी परमात्मा में समा दिखाई देने लगते हैं। वह सबके समीप हो जाता है। तब वह सबके साथ एकमयता प्राप्त कर लेता है। फिर न वियोग होता है, न संयोग में बाधा। किसी से मिलने की चाह तब होती है, जब वह अपने पास न हो। एकमयता प्राप्त हो जाने पर......।'
इस समय सेठजी तथा प्रकाशचन्द्र कमरे में आ गये। शीलवती और कमला उठ खड़ी हुई। दोनों ने हाथ जोड़ प्रणाम किया और शीलवती ने-पूछ लिया, "पिताजी। कुछ काम है?"
उत्तर में प्रकाशचन्द्र ने कहा, "हम यह देखने आये थे कि कमला क्या कर रही है?''
"कुछ काम है भैया?"
"नहीं, सूरदास घर छोड़ गया है।"
''हमें ज्ञात है।"
''सत्य?" अनायास प्रकाश के मुख से निकल गया, "कब पता चला है?"
उत्तर कमला ने दिया, "रात ही पता चल गया था। पिताजी ने मुंशीजी से उन्हें कहलवा भेजा था कि वह उनको कहीं बाहर भेजना चाहते हैं और वह स्वयं ही चले गये हैं। इस बात के लिये वह पिताजी को कष्ट देना नहीं चाहते थे।''
''तो बह तुमको वह बताकर गये हैं?'' प्रकाशचन्द्र ने पूछा।
"जी।''
"सुन्दरदास के हाथ?" अब सेठजी ने पूछ लिया।
''नहीं पिताजी। उन्होंने बिन्दु से कहा था कि वह मुझे दिन निकलने पर बता दे कि वह जा रहे हैं। तदनन्तर मैं पिताजी तथा माताजी से मिलकर तथा सुन्दरदास की पत्नी से सब बात जान गयी हूं।
''अभी सुन्दरदास उनके साथ है और उसकी पत्नी यहां है। इस कारण कुछ विशेष चिन्ता की बात प्रतीत नहीं होती। इससे मैं यह समझी हूं कि जब किसी निश्चित स्थान पर पहुँच जायेंगे तो वह सूचना भेज देंगे।"
प्रकाश कमला की सब बात बिना किसी प्रकार का हर्ष शोक प्रकट किये बताते सुन चकित था। वह एक बात समझा कि कमला सूरदास से सम्पर्क रखने का प्रबन्ध किये हुए हैं।
सेठजी ने कह दिया, "मैं भी सुन्दर-दास से समाचार सुनने की आशा कर रहा हूँ। इस पर भी यह विचार कर कि जब रेल पर नहीं गया, मोटर बस के अड्डे पर नहीं तो अवश्य पैदल ही गया होगा। उसको मैं बीस मील तक देख आया हूँ। वह सड़क पर दिखायी नहीं दिया।"
पिता-पुत्र दोनों कमला के कमरे से निकल आये और दोनों अपने अपने कमरे में चले गये। प्रकाशचन्द्र ने श्रीमती को बताया, "सूरदास की मां ने सुन्दरदास के साथ बदायूं से बाहर भेज दिया है।''
"कहां भेज दिया है?"
''यह अभी पता नहीं चला। पिताजी तो उसके जाने पर चिन्ता कर रहे प्रतीत होते हैं, परन्तु मां कुछ बता नहीं रही कि उन्हें कहां भेजा है। पिताजी रात भी और अब भी उसे मोटर गाडी में ढूँढ़ने गये थे। वह मिला नहीं। मुझे तो कुछ ऐसा सन्देह हो रहा है कि माँ ने उसे कहीं इसी नगर में छुपा रखा है।"
"उनका अपना क्या प्रयोजन हो सकता है, इसमें?"
"एक बात है कि वह घर में नहीं हैं।"
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :