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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

यद्यपि मकान का फर्श कच्चा था और दीवारों पर सफेदी इत्यादि नहीं हो रही थी, इस पर भी बहुत साफ-सुथरा स्थान था। धनवती ने लड़की को देखा तो उसका सौन्दर्य देख स्तब्ध खड़ी रह गयी। उसने एक् कमरे में लड़की को ले जाकर बैठाया और उसके पिता को कहा, "आप बाहर चलकर ठहरिये। मैं इससे पृथक में बात करना चाहती हूं।''

दस मिनट तक धनवती तारकेश्वरी से बातचीत करती रही। तदनन्तर धनवती बाहर आयी और तारकेश्वरी के पिता को बुला लायी तारकेश्वरी ने कहा, "पिताजी! आप अब जा सकते हैं और इसके उपरान्त जब भी यहां आऐ, अपनी मोटर पर न आया करें। मैं अब यही रहूंगी। इस साधन विहीन मकान में मैं साधन उपलब्ध कर अपनी सुख-सुविधा का प्रबन्ध कर लूंगी।"

सेठ को समझ आया कि धनवती ने अपना सम्मोहन लड़की पर डाल उसे मोहित कर लिया है। इससे वह प्रसन्न था। वह ईश्वर से प्रार्थना करता था कि यह सम्मोहन कम से कम प्रसव काल तक चलता रहे।

परन्तु यह सम्मोहन प्रसव के उपरान्त भी चलता गया। तारकेश्वरी के पिता का देहान्त सन् 1955 में हुआ था और वह अपनी मृत्यु के पूर्व बम्बई में चला आया था। मृत्यु के समय उसका इच्छा-पत्र पढ़ा गया तो उसमें कई लाख रुपये की सम्पत्ति तारकेश्वरी के लिए छोड़ गया था।

सम्पत्ति पर अधिकार प्राप्त करते ही तारकेश्वरी हरिद्वार आयी और ढूंढकर धनवती के मकान पर पहुँची। वहां उसने अपने लड़के का पता करने के लिये पूछा।

धनवती ने बताया कि लड़का सेठजी के कहने पर संत माधव-दास को दे दिया गया था और सन् 1950 तक वह उसे संतजी के साथ कथा-कीर्तन करते देखती रही है, परन्तु पीछे वह वहां नहीं रहा। संत कृष्णदास से पता किया गया, परन्तु उसने उसका पता नहीं

बताया। कई दिन की पूछ-ताछ के उपरान्त वह लौट गयी और एक वर्ष उपरान्त वह फिर आयी। और इस बार वह दो सौ रुपया धनवती को दे गयी थी, जिससे कि उसे किसी स्थान पर उसके होने की सम्भावना लगे तो वह जाकर निश्चय कर उसे तार दे दे।

आज एकाएक धनवती को सूरदास बैठा दिखायी दिया। पहचानने में कुछ कठिनाई अवश्य हुई। अब दाढी, मूंछ बढ़ आयी थीं, परन्तु आंखें ठीक होने पर भी वह अन्धा था और एक सेवक का हाथ पकड़े हुए टोह-टोह कर पग धरते हुए आते देख वह पहचान गयी। ऐसा अन्धा संसार भर में दूसरा नहीं हो सकता शा। वह विचार करती रही थी कि किस प्रकार इससे सम्पर्क बनाये? क्या इसे उसका नाम इत्यादि स्मरण होगा?

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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