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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

जब सुन्दरदास उसे बैठा पूरी लेने गया तो वह उसके समीप आ बैठी और बोली, ''राम हो? यहां क्या कर रहे हो?"

जब राम ने बताया कि वह अब वहां जाना नहीं चाहता जहां वह पिछले सात वर्ष से रह रहा है तो धनवती का मार्ग सुलभ हो गया। तारकेश्वरी को धनवती का तार मिला मध्याह्न के समय। तार पढ़ते ही वह प्रसन्नता से उछल पड़ी। मध्याह्न के भोजन का समय था, परन्तु उसे भोजन स्मरण नहीं रहा। तुरन्त हरिद्वार पहुंचने की योजना बनने लगी। उसने टेलीफोन उठाया और इण्डियन एयर लाइन्स के कार्यालय से पता होने लगा कि किस हवाई जहाज से दिल्ली के लिये स्थान मिल सकता है?


स्थान मिला तीन बजे के हवाई जहाज से और वह छ: बजे दिल्ली पहुँच गयी। हरिद्वार को जाने वाली पैसेन्जर गाड़ी से र्फ्स्ट क्लास की सीट मिल गयी। सात बजे वहां से चल वह प्रात: पांच बजे हरिद्वार पहुंच गयी और वहां रिटायरिंग रूम में ठहर वह छ: बजे धनवती के घर जा पहुंची।

सूरदास ने धनवती को बता दिया था कि वह मकान के बाहर नहीं निकलेगा। उसके साथ बदायूं से आया सेवक उसे सड़कों पर ढूँढ रहा होगा। सूरदास अब बदायूँ से सम्पर्क तोड़ देना चाहता है। अत: धनवती घर को ताला लगा गंगा स्नान के लिये चली गयी थी। वह इतनी जल्दी तारकेश्वरी के पहुँचने की आशा नहीं करती थी।

तारकेश्वरी मकान को ताला लगा देख चिंताग्रस्त खड़ी रह गयी। इतने मंर मकान के बाहर हलवाई की दुकान करने वाला आया तो उसने बताया, "मकान की मालकिन यही है। उसके घर में कोई मेहमान आया हुआ है। उसके लिये पूरी, मिठाई लेने गयी थी। उसे लेकर वह गंगा स्नान के लिये गयी होगी।"

इससे तारकेश्वरी को सन्तोष हुआ और वह अपनी टैक्सी में बैठी धनवती की प्रतीक्षा करने लगी, परन्तु जब गंगा घाट की ओर से अकेली धनवती को आते उसने देखा तो पुनः उसके मन में संशय उत्पन्न होने लगा। वह समझ नहीं सकी कि उसका पुत्र कहां होगा? वह टैक्सी से उतर सड़क के किनारे खडी हो धनवती की प्रतीक्षा करने लगी।

धनवती ने भी अपने द्वार पर टैक्सी खड़ी देखी तो इसका अभिप्राय समझ लम्बे-लम्बे पग उठा उधर ही आने लगी। जब उसने तारकेश्वरी को टैक्सी के समीप सड़क पर खड़े देखा तो चित्त में प्रसन्न हो लगभग भाग खड़ी हुई।

समीप पहुंच उसने हाथ जोड़ आशीर्वाद दिया औरं कहा, "आइये बहनजी! बहुत कठिनाई से पकड़ पायी हूं।"

वह ताला खोलने लगी तो तारकेश्वरी ने चिन्ता व्यक्त करते हुए पूछ लिया, "तो क्या उसे ताले में कैद करने की आवश्यकता अनुभव हुई है? वह भागने वाला था क्या?"

''नही बहनजी! ऐसी कोई बात नहीं। भय यह है कि जिनके घर में वह रहता था, वह उसे देख लें तो अपने साथ ले जाने का हठ करने लगेंगे?"

''और वह कहां है?''

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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