उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
सूरदास स्नान कर कीर्तन कर रहा था। वह अति मधुर स्वर में गा रहा था...?..
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं।
धनवती ने अपने होठों पर अंगुली रख तारकेश्वरी देवी को चुप करने का संकेत कर दिया। दोनों मौन हो और पंजों के बल वहां पहुँची जहां वह भूमि पर बैठा, पूर्व की ओर मुख किये हुए स्तोत्र पढ़ रहा था। तारकेश्वरी इस सुन्दर युवक की मां होने में गर्व अनुभव करने लगी थी। उसके ह्दय में वात्सल्यता लहरें लेने लगी थी।
सूरदास गा रहा था......
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिम्
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्।।
तारकेश्वरी अनुभव करने लगी कि यदि वह आज भी चार पांच वर्ष का बालक होता तो बरबस उसको गले से लिपटा उसका मुख चूम लेती, परन्तु इक्कीस वर्ष के युवक के साथ वह यह व्यवहार नहीं कर सकी। वह सूरदास के सामने कुछ दूर हट कर भूमि पर बैठ गयी और उसके मुख को देख-देख उसके सौन्दर्य का रस पान करने लगी। धनवती भी उसके पास बैठ गयी। सूरदास ने अपना कीर्तन जारी रखा। वह गा रहा था......
नान्या स्पृहा रघुपते हदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रधुपुङ्गवं निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च।।
सुरदास का स्वर पिछले सात वर्ष के निरन्तर अभ्यास से परिपक्व हो चुका था। उसमें अति मिठास और स्थिरता आ चुकी थी। एक विशेष प्रकार का प्रभाव जो संगीत के निरन्तर अभ्यास से ही उत्पन्न हो सकता है, वह प्रचुर मात्रा में उसके स्वर में था।
सूरदास गाता जा रहा था......
अतुलितबलधामं हैमशैलाभदेहम्
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
इस प्रकार आधा घण्टा भर कीर्तन चलता रहा और बीच-बीच में धनवती संकेत से तारकेश्वरी से पूछती कि वह उसे सचेत करे क्या? तारकेश्वरी अंगुली हिलाकर कह देती, "नहीं। उसे चलने दो।'' इनको बैठे और मन्त्र मुग्ध हो सुनते आधे घण्टे से ऊपर हो चुका था कि सूरदास ने अन्तिम गीत गा दिया।
बड़ी है राम नाम की ओट
सरन गऐ प्रभु काढ़ि देत नहि, करत कृपा के कोट।
बैठत सबै सभा हरि बू की, कौन बड़ौ को छोट।
सूरदास पारस के परसै, मिटति लोक की खोट।।
बड़ी है....
सूरदास ने आंखें खोलीं। दोनों स्त्रियां मौन बैठी थीं। सूरदास ने एक क्षण विचार किया और उसे सामने बैठी तारकेश्वरी की साड़ी की सरसराहट सुनायी दी तो विचार कर उसने पूछा, "मां!"
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